ख़ुशियों के रंग
रंग पंचमी का दिन है और मैं बरामदे में बैठकर अखबार पढ़ रहा हूँ निश्चिन्त ,निर्विघ्न !
(त्यौहार की गरिमा धूमिल सी हो गई हैं अश्लीलता व्याप गई है शालीनता को धकेलकर ,परे हटाकर
नहीं जाऊँगा गेर में , कपड़े फाड़ देना ,कालिख लगा देना
गाली भरे नारे ..ऊपर से फिर बुरा न मानों होली है कहकर
बात को हवा में उड़ा देना ,
मैं अपनी सोच में गुम था और पेपर के पेज पलट भर रहा था)
बिटिया अपनी नन्हीं सहेलियों के साथ...