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ख़ुशियों के रंग

रंग पंचमी का दिन है और मैं बरामदे में बैठकर अखबार पढ़ रहा हूँ निश्चिन्त ,निर्विघ्न !

(त्यौहार की गरिमा धूमिल सी हो गई हैं अश्लीलता व्याप गई है शालीनता को धकेलकर ,परे हटाकर
नहीं जाऊँगा गेर में , कपड़े फाड़ देना ,कालिख लगा देना
गाली भरे नारे ..ऊपर से फिर बुरा न मानों होली है कहकर
बात को हवा में उड़ा देना ,
मैं अपनी सोच में गुम था और पेपर के पेज पलट भर रहा था)
बिटिया अपनी नन्हीं सहेलियों के साथ ,पत्नी पड़ोसनों के
साथ रंग गुलाल लगाने में मशगुल है आखिर मैं कैसे थोप
सकता हूँ अपना निर्णय उन पर कि तुम भी न खेलों ,
सच भी है त्यौहार है तो मनाना ही चाहिए मेल मुलाकात
बढ़ती हेै ,मन के कलुषित भाव प्रेम भाव में बदलते हैं मन की प्रसन्नता ,उत्साह ही तो है उत्सव का अभिप्राय भी ।

अरे ! पापा आप नहीं गए रंग पंचमी खेलने ,आज के दिन बेरंग सपाट चेहरे अच्छे नहीं लगते ,आपके साथी नहीं आए
रंग लगाने को । (एकाएक बिटिया ने प्रवेश करते हुए कहा )

जाऊँगा ! कोई आए तो सही कोरोना काल के बाद यह पहली होली है कोई आते हैं तो रंग गुलाल के बाद थोड़ा जलपान कराने का अपना फर्ज तो बनता है न ,
शायद हुरियारों की टोली आ रही है ढोल डीजे की धुन पर नाचते हुए !
हाँ ! हाँ देखते हैं शायद वही लोग हो मैंने कहा ।

पापा ! ये टोली हुरियारों की तो अगली गली में मुड़ गई शायद
कोई और हो पर मुझे भी तो आपसे कुछ कहना है

हाँ हाँ बोलो तो ,मैंने कहाँ !
हैप्पी होली ! यह कहते हुए उसने रंग लगाया और चरण स्पर्श ! कर बिटिया फौरन अंदर भाग गई ।
मैं इस रंग को देख अभिभूत हो मन ही मन खुश हुआ
चमक उठे खुशियों के रंग होली के संग -ये परम्पराएं ,ये रिवाज ,ये चहक ,ये उल्लास ही तो है जो ऊर्जावान रखते हैं हमें और जोड़ते हैं हमेंअपनी जड़ो से ,अपने बड़ो से यही है असल उद्देश्य और संदेश पर्व मनाने का !


© MaheshKumar Sharma
12/3/2023
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