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बिपरजॉय की तूफानी रात में दानी मजदूर करण
कल की घटना है।समूचा दक्षिण पश्चिमी राजस्थान, उत्तर पश्चिमी गुजरात बिपरजॉय चक्रवाती तूफान की चपेट में था। राजस्थान सरकार द्वारा तूफान प्रभावित इलाकों की सभी स्कूले ,तूफान से प्रभावित होने वालों के लिए खोल दी गई। नए प्रस्तावित जिले सांचौर की विषाधिकारी महोदया ने सभी सरकारी कार्मिकों की छुट्टियों को कैंसल कर पंचायत मुख्यालय पर तैनात किया गया। स्थानीय सरपंच के पिता,p w d के जेईएन, ग्रामसेवक, जेसीबी चालक के साथ मैं स्कूल में बैठा बतिया रहा था। तूफान जारी था। बारिश हो रही थी। इतने में बाइक पर दो युवक आए और पूछा,
क्या स्कूल के कमरों में रात बिताने को जगह मिलेगी।
मेने कहा हां।
कहां से आ रहे हो।
वह बोला,इसी गांव का रहने वाला हूं।गुजरात में बटाई पर खेती कर रहा था।वहां से बारह बोरी बाजरा,लेकर घर आया।लेकिन तूफान में बाजरा भीग गया।घर जिसकी छत टीन की थी,उड़ गई।बच्चे पत्नी वहां भीग गए।
मेने उन्हें तुरंत स्कूल का बड़ा सा हॉल दे दिया। उस हाल में मध्यप्रदेश के मजदूरों को पहले से ठहराया गया था। वह युवक अपनी पत्नी,भाई और तीन छोटे छोटे बच्चों के साथ होल में लगे स्टूडेंट टेबल को आपस में जोड़ कर सो गए।
हमारे पास उन्ही मजदूरों में से एक जो जिसका नाम करण था, वह भी बैठा था।
सरपंच के पिता जी से मेने कहा शायद ये लोग भूखें है।रात आधी बीत चुकी थी।बारिश हो रही थी।सरपंचजी के पिता जी ने मुझ से कहा माड साब में दुकानदार को बुलाता हूं,ताकि बिस्किट नमकीन आदि उनको खिलाई जा सके।
में होल में गया। उन से खाने के बारे में पूछा। वो बोला चालछे। अर्थात चलेगा।मेने उस से कहा में आटा दाल दे देता हूं। चूल्हे में अभी तक आग है।सुखी ईंधन रखी है।बर्तन भी है। आओ खाना बना लो।
वह युवक मेरे साथ आया।चूल्हे में आग को जलाया। आटा लगाने वाला ही था कि उन मजदूरों में से एक मजदूर करण आया और बोला
Sir ये कितने लोग है।
मेने कहा ३बड़े और ३ बच्चे है।
वो बोला हमने अभी खाना बनाया था। रोटी और दाल बची हुई है।इनको दे दीजिए।ये बहुत परेशान है।यह कहते हुए दाल की देगची और रोटी का डिब्बा वहां रख दिया। उन लोगों ने भर पेट खाना खाया।फिर भी दो रोटी बच गई।
मै सोचने लगा की एक मजदूर जो खुद अपने घर से दूर है,स्कूल में परिवार सहित रुका है,वह दूसरे पीड़ित के प्रति कितनी सहानुभूति रखता है।उसका दिल कितना बड़ा है। जो रात में अपने पास आए को तूफान बारिश में खाना खिलाता है।
वास्तव में इंसानियत उन में है जिन्हे हम नीचे तबके के,मजदूर लोग कहते है।वो एम पी वाला मजदूर मुझे किसी धन्ना सेठ से कम नहीं लगा। कुंतीपुत्र करण के नाम का प्रभाव था या उस मजदूर की सहजता,उसका दिल बहुत बड़ा लगा। वह दुनिया का सबसे बड़ा दान वीर लगा।जहां अति आधुनिक समाज में कॉन्वेंट एजुकेटेड समृद्ध युवा अपने वृद्ध मां बाप को रोटी नही खिलाते हैं,उन्हे वृद्धाश्रम में पहुंचा देते है दूसरी ओर खुद आफत में पड़ा हुआ,अनपढ़ मजदूर दूसरे आफतग्रस्त को खाना खिलाता है। सच है इंसानियत झोंपड़ों में पलती है और साजिश महलों में।