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शरारती लड़की कैसे बनी पण्डिताइन
दोस्तों एक बहुत पुरानी बात है बचपन मे जब हम 26 जनवरी को बड़े ही उत्साह से स्कूल जाया करते थे तब हम NCC के Command Oficer थे सुबह सुबह जल्दी उठकर स्कूल जाना मतलब ठंड से बुरा हाल जब स्कूल के ग्राउंड और हमरीं परेड हुआ करती थी तब सावधान कहते ही सीधा पैर उठाकर जोर से जमी पर रखना पड़ता था। (एक तो इतनी ठंड में हाफ चड्ढी पहनी होती थी) ऐसा करने के बाद जब हाफ चड्ढी में से अंदर ठंडी हवा गुसती थी तब मानो पूरा बदन ठंड से कांप जाता था ऐसे वक़्त पण्डिताइन बहुत हसती 🤣 थी लगता था उसे वही पकड़कर कूट दु।

पण्डिताइन ने अपने जीवन का पहले गोल्ड मेडल जीता था शतरंज प्रतियोगिता में तब हमने उन्हें पूरे 5 रुपये की कैंडी लेकर दी थी।
पता नही था भविष्य में ये पगली लड़की हमारे कुंडली पर जमकर चारो खाने चित करेगी हमे। जैसे बरगत का पेड़ अपनी जड़ें मजबूती से कसकर फैलाता है उसी तरह पण्डिताइन ने हमे हर जगह जकड़कर रखा हैं।
बचपन से उसे मेरी लंका लगाने में बहुत आनंद आता था आज भी उसका वही लहजा कायम हैं। ऐसी है हमरीं पण्डिताइन जी जिस पर हम अपना सब कुछ समर्पित कर चुके हैं।

आई लव यू मेरी पण्डिताइन जी 😘
मेरी जान, मेरी ज़िंदगी
© उन्मुक्क्त अनूप