...

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ज़माना आज का...
कितना ज़हर घुला है अब दुनिया की बाज़ारों में,
अस्मत तक बिकती है अब खुलकर के अख़बारों में।

ढंग रहा ना बातों का, अब ना वो शिष्टाचार रहा,...