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Teacher
#टीचर
आज टीईटी का परिणाम घोषित हुआ है, शैलेंद्र भी पास हुए है। घर में खुशी का माहौल है। वो क्या है पांडेयपुर मोहल्ले में जनरल कास्ट का लडका एक ही बार में वो भी बिना किसी घूंस के पास हुआ है, कोई कम बात थोरे ना है जी! शैलेंद्र खुश है की अब वो अपने तरीके से बच्चों को इतिहास की सैर करवाएंगे।
शैलेंद्र की नई शुरुआत

शैलेंद्र के टीईटी का परिणाम देखकर उसकी माँ की आँखों में आँसू आ गए। वह खुशी से चिल्लाते हुए बोलीं, “मेरे बेटे ने कर दिखाया! हम सबको गर्व है तुम पर।” शैलेंद्र ने माँ को गले लगाते हुए कहा, “माँ, ये आपकी दुआओं का फल है। अब मैं बच्चों को इतिहास की सैर करवा पाऊंगा।”

पांडेयपुर मोहल्ले में शैलेंद्र का नाम अब सभी की जुबान पर था। सब लोग उसकी ईमानदारी और मेहनत की तारीफ कर रहे थे। वह जानता था कि पास होने का मतलब सिर्फ नौकरी पाना नहीं है, बल्कि बच्चों को सही तरीके से शिक्षा देना भी है। उसने ठान लिया कि वह अपने अनोखे तरीके से पढ़ाएगा।

शैलेंद्र ने मोहल्ले के बच्चों के लिए एक विशेष कक्षा शुरू की। उसने हर दिन नई कहानियाँ और ऐतिहासिक घटनाएँ सुनाने का फैसला किया। बच्चों को इतिहास से जुड़ी रोचक कहानियाँ सुनाते हुए उन्होंने उन्हें बताया कि कैसे हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया और देश की आज़ादी के लिए बलिदान दिया।

एक दिन, उसने बच्चों को एक विशेष प्रोजेक्ट करने के लिए कहा। उन्होंने इतिहास की प्रमुख हस्तियों के बारे में जानकारी इकट्ठा की और अपने-अपने पेंटिंग्स बनाए। बच्चों ने अपने पेंटिंग्स के जरिए महात्मा गांधी, रानी लक्ष्मीबाई और अन्य वीरता की कहानियों को जीवित कर दिया।

शैलेंद्र को देखकर मोहल्ले के लोग भी खुश थे। उन्होंने उसे सराहा और कहा, “शैलेंद्र, तुमने हमारे बच्चों को इतिहास के महत्व का अहसास कराया है। तुम्हारी मेहनत और लगन ने हमारी पीढ़ी को सही दिशा दी है।”

इस तरह, शैलेंद्र ने न केवल अपने सपने को पूरा किया, बल्कि अपने मोहल्ले के बच्चों के भविष्य को भी उज्ज्वल बना दिया। उसकी मेहनत और लगन से बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ी। अब वे सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं थे, बल्कि इतिहास को अपने जीवन में उतारने लगे थे।

शैलेंद्र ने महसूस किया कि शिक्षा का असली मतलब सिर्फ पढ़ाई नहीं है, बल्कि बच्चों को सिखाना और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना है। उसके इस सफर ने साबित कर दिया कि सच्ची मेहनत और ईमानदारी से किया गया काम कभी बेकार नहीं जाता।

आखिरकार, शैलेंद्र ने अपने मोहल्ले में एक नया अध्याय शुरू किया, जहाँ शिक्षा का महत्व समझाया गया और बच्चों को उनके सपनों की उड़ान भरने के लिए प्रेरित किया गया।


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