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चिट्ठी
#चिट्ठी
लाइब्रेरी में बैठी हुई निकिता क़िताब के पन्ने पलट रही थी और बेसब्री से सुप्रिया का इंतज़ार कर रही थी। जब से सुप्रिया का कॉल आया था और उसने उसे लाइब्रेरी बुलाया था ये कह के की उसको उस चिट्ठी के बारे में कुछ पता चला है, तब से निकिता बेचैन थी। निकिता की धड़कनों की रफ्तार भी कुछ बढ़ सी गई थी। तभी अचानक से उस शांत सी लाईब्रेरी में किसी के तेज कदमों की आवाज गूंजने लगती है , इतने में निकिता मुड़ कर देखती है कि सुप्रिया अपने तेज कदमों से निकिता की ओर चली आ रही थी । इतने में निकिता अपनी जगह से उठ कर, सुप्रिया के हाथ पकड़ उसे अपने पास बिठा लेती है और धीमी आवाज में सुप्रिया से पूछने लगती है तब सुप्रिया कहने लगती है कि जो चिट्ठी तुझे तेरे बैग में कल मिली थी ।अभी सुप्रिया इतना कहती है तभी निकिता जल्दी से बोलती है कि आगे बोल तू ये कहानी की तरह क्यूँ सुना रही है । सुप्रिया कहती है , हा बाबा !! बता तो रहीं हूँ तू सुन तो। सुप्रिया आगे बताती है कि वो मेरे ट्यूशन में उसका दोस्त पढ़ता है तू जानती है , मैंने उसी से पूछा , उसने उससे जा कर पूछा था । जानती है तू उसने क्या कहा। निकिता कहती है कि हां बता उसी ने लिखी थी ना वो चिट्ठी। इतना कहते हुए निकिता अपनी नजरों को झुका लेती है और उसकी धड़कन भी जोरों से चलने लगती हैं, मानो कि उसके कान ये ही बात सुप्रिया के मुह से सुनने को तरस रहे हो। निकिता की बात सुनकर सुप्रिया कहती हैं नहीं तू गलत समझ रही है , उसने कहा कि ये चिट्ठी उसकी नहीं है , उसने नहीं लिखी थी वोह चिट्ठी। देख निकिता तू उदास नहीं होना , क्या हुआ अगर इतने सालों बाद भी वो तुझसे अपनी दिल की बात नहीं कहना चाहता तो, एक ना एक दिन एहसास उसे भी होगा जब तू उससे दूर होने लगेगी तो । उस दिन एक बार फिर से निकिता का दिल टूट गया था , सुप्रिया की बातें सुनकर निकिता की आंखों में आंसू थे जो कि वो जाहिर करना नहीं चाहती थी मगर फिर भी उसके आँखों से बहते आंसू उसके बेइंतहा मोहब्बत और उस मोहब्बत के इज़हार के इंतजार में बीत गए सलों का दर्द जाहिर कर रहें थे।

" ये लम्हा गुजरने को गुजर गये , बीते साल और ये साल भी बदल गए , हम बैठे वहीं धूप में तेरी छाँव का इंतजार करते रह गये !! "



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