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आईना 🍂✍️
जब हम ज्ञान और विवेक से भरे होते हैं तो क्या हम खामोश रहना चुनते हैं ?

जब हम परेशान होते हैं और अपनी परेशानियों को हल नहीं कर पा रहे होते हैं... तो क्या हम ज़रूरत से ज़्यादा बोलने लगते हैं?

जब हम कम बोलते हैं और सुनते ज़्यादा हैं , तो क्या हम बोलने वाले के मनोभावों को ज़्यादा अच्छे से समझ पाते हैं ???


जब हम अविवेकपूर्ण तरीके से बहुत ज़्यादा बोलते हैं, तो क्या हम बातचीत को बोझ बना देते हैं....?

क्या ज़्यादातर चुप रहने वाले लोग अपने अंदर से भी उतने ही शांत होते हैं???

जब हम सचेत मन से ये सब सवाल जवाब अपने आप से करते हैं.... तो कोई वजह ही नहीं रहती अपने आप से या सामने वाले से नाराज़ होने की ....

हर इंसान अपने आप में किसी द्वंध से गुज़र रहा है .... जिसका आईना उसका व्यवहार अपने आप ही बन जाता है....
इसलिए अपने मन की शांति और स्वाभिमान बचाएं रखें....।

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© संवेदना