...

1 views

प्यार बड़ा या पैसा
मुझे पता है इस प्रश्न का जवाब अधिकतर लोग प्यार सुनना पसंद करते हैं फिर भी में सच्चाई लिखना पसंद करूँगा।

पैसा

पैसा सब कुछ तो नहीं लेकिन बहुत कुछ जरूर है.’ ऐसा कहने के पीछे लोगों की मंशा साफ़ समझ आती है कि वे पैसे को महत्वपूर्ण तो बताना चाहते हैं लेकिन खुद को पैसा परस्त बताने से भी बचना चाहते हैं. हम सब इस बात को बखूबी समझते हैं

सीधी बात ये है कि पैसे की कद्र करने के पीछे हमारी जरूरतें होती हैं. पैसे का बड़प्पन इस बात से बढ़ता है कि हमारी जरूरत कितनी बड़ी है. अगर हमारे पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है तो उस वक्त पैसा हमारे लिए सबसे बड़ी चीज हो सकता है. इसके बाद अगर हमारे पास पहनने के लिए कुछ नहीं है तो पैसा थोड़ा घटे कद के साथ हमारे सामने आकर खड़ा होता है. हमारी जरूरतों की प्राथमिकता जिस हिसाब से बदलती जाती है, पैसे का कद भी उस हिसाब से घटता जाता है

भारतीय दर्शन में हमेशा पैसे को मिट्टी या हाथ का मैल बताने की परंपरा रही है. इसके पीछे लोगों को मेहनतकश और आत्मनिर्भर बनाने का उद्देश्य रहा है

पैसा न सिर्फ वस्तुओं की कीमत आंकने का जरिया है बल्कि पैसे से अब इंसान की कीमत भी तय होती है. यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है लेकिन कुछ अलग मायनों में सच है. इंसान की कीमत उसके काम से तय होती है. काम करने के लिए उसे पैसे मिलते हैं. कोई व्यक्ति जितना कमा रहा है और वक्त के साथ उसके कमाए पैसों में जितनी बढ़ोत्तरी हो रही है, यही उस आदमी की बढ़ती कीमत और बढ़ते महत्व का इकलौता मानक होती है

अगर पैसा बड़ा नहीं होता तो मिट्टी ढोने वाले मजदूर को सॉफ्टवेयर बनाने वाले इंजीनियर से ज्यादा महत्व मिलता क्योंकि वह ज्यादा शारीरिक श्रम कर रहा है. काम की प्रकृति और उस काम से कितने लोगों की जिंदगी में फर्क पड़ रहा है, यह बातें किसी व्यक्ति का महत्व निर्धारित करती हैं. काम की कीमत, पैसा और व्यक्ति की कीमत आपस में संबंधित हैं और एक दूसरे से प्रभावित हैं

पैसे के बारे में एक आम राय है कि हर चीज पैसे से नहीं खरीदी जा सकती जो चीजें पैसे से नहीं खरीदी जा सकतीं उन्हें भी पैसा कहीं न कहीं प्रभावित करता ही है. जैसे उदाहरण के लिए मां का प्यार पैसे से नहीं खरीदा जा सकता लेकिन, मां भी अपने बेरोजगार बेटे को दुआओं के साथ लानत-मलानत देती रहती है. बेशक, ऐसा वह बच्चे के भले लिए करती है लेकिन यह भला भी पैसे कमाने से ही शुरू होता है

वही बेटा जो बेरोजगारी के दिनों में घर पर बैठने के लिए ताने सुन रहा था, नौकरी लगने के बाद वक्त न निकालने के लिए प्यार भरी फटकार सुनता है. इससे यह सिद्ध नहीं होता कि पैसे या वक्त की इकाइयों में भी मां के प्यार का कोई मोल तय किया जा सकता है. सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि पैसा रिश्तों के अच्छा बने रहने में भी कहीं न कहीं बड़ी भूमिका निभाता है. फिर भी पैसा सबसे बड़ा इसलिए नहीं है कि सच्चे रिश्ते बनाने में पैसा किसी काम नहीं आता. इसलिए हम यह कह सकते हैं रिश्ते बिन पैसे के बन सकते हैं लेकिन उनके मेंटेनेंस के लिए तो थोड़े पैसों की भी जरूरत होती है

यहां पैसे को भगवान नहीं कहा जा रहा है हालांकि पैसे की ही तरह भगवान भी हमारे सारे काम नहीं करते और हम उन्हें भी बड़ा तो मानते ही हैं. पैसे की ऊंचाई इस बात से भी समझी जा सकती है कि लोग भगवान को भी खुश करने के लिए बेतहाशा पैसा खर्च करने को राजी रहते हैं. इसलिए यह कहना ज्यादा सही है कि भगवान सबसे बड़ा होता है और पैसा बहुत बड़ा