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बड़ी हवेली (डायरी - 11)
मैंने कमांडर से कहा "कहाँ आप टाँग खीचने लगे, मी लॉर्ड, कहानी तो सुनाईये"।

"कहानी सुनने का मज़ा तब नहीं आता जब कहानी के केवल कुछ हिस्से ही बताए जाएं, कहानी सुनने का मज़ा तब आता है जब सब कुछ विस्तार से बताया जाए", कमांडर ने कहा।

"अब ताज महल का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ 1630 में शुरू हुआ ताजमहल का बनने का काम करीब 22 साल तक चला। इसे बनाने में करीब 20 हजार मजदूरों ने योगदान दिया। जिनका हाँथ औरंगजेब ने कटवा दिया लेकिन इतिहास इसका इल्ज़ाम शाहजहाँ के ऊपर लगाता है पर हुआ ये था कि शाहजहाँ ताजमहल के निर्माण के बाद ठीक उसका सामने एक और ताज बनाना चाहता था जिसका नाम वह काला ताज रखने वाला था।

ताज महल बनाने का काम चल ही रहा था कि उसी समय हमारा पोस्टिंग हिन्दुस्तान में हुआ, हम हमारा सीनियर ऑफिसर के साथ आगरा का पोस्ट संभाला, हमारे सीनियर ऑफिसर और हमारा उठना बैठना अब शाहजहाँ के दरबार में होने लगा।

देखते ही देखते कुछ ही दिनों में हम औरंगजेब का ख़ास आदमी में से बन गया, जिससे वह अपना दिल का सारा बात हमको बताने लगा, हम पर विश्वास करने लगा। उन्ही दिनों आगरा के आसपास का इलाकों से अक्सर लूट पाट का काफ़ी ख़बर आने लगा। एक ऐसा लुटेरा जो सिर्फ शाही परिवार को ही नहीं बल्कि व्यापार करने आए सभी मुल्कों का सरकारी सामान लूट लेता था।

उस लुटेरे ने जैसे अपना शिकार चुन लिया हो और उसका निशाना पर मुग़ल सल्तनत के साथ सारा व्यापार करने आया विदेशी मुल्क था । उसकी बुद्धि और ताकत के चर्चे जगह जगह हो रहे थे। उसके निशाने पर खास तौर से शाहजहाँ का शाही खानदान था और औरंगजेब का सेना उससे कई बार मात खा चुका था।

एक युद्ध जो सेनाओं का साथ मिलकर लड़ा जाता है कुशल मार्ग दर्शन से जीता जा सकता है लेकिन एक युद्ध जो छुप कर लड़ा जाता है उसे जीतना मुश्किल होता है। ऐसा ही कुछ भारत के कई राज्यों में हो रहा था और इसे लड़ने वाला शख्स ख़ुद को गुमनाम रखता था। देखते ही देखते भारत के कई शाही परिवारों को चूना लगने लगा उनका वो ख़ज़ाना खाली होने लगा जिसे वह बड़ा शान से दिखाया करता था।

इसी सिलसिले में एक बार हमारा ऑफिसर को बादशाह शाहजहाँ का दरबार में बुलाया गया। हम अपना सीनियर का साथ वहां पहुंचा। दरबार में उसी लूटेरा को लेकर चर्चा हुआ। बादशाह ने पहला बार ब्रिटिश को हर राज्य के नगरों में पहला पुलिस चौंकी (पोस्ट) बनाने का अनुमती दिया और इसका काम नगर के साधारण लोगों में से मुखबिरों को बनाना और उन्हें अलग अलग राज्यों में खबरें इकट्ठा कर गुनहगारों को सज़ा दिलवाने में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का मदद करना था, बादशाह ने यह शर्त रखा था कि अगर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी इसमें कामयाब हो गया तो अधिकारिक तौर पर उसे इन चौकियों का अधिकार दे दिया जाएगा वर्ना उन पर बादशाह के ही सैनिकों का अधिकार रहेगा।

बादशाह शाहजहाँ तो ताजमहल का काम में ज़्यादा लगा रहता था तो लूटेरा और राजनीतिक भागदौड़ का जिम्मा औरंगजेब को दे दिया था। वह राजनीतिक मामलों को अच्छा तरह से संभालने लगा, केवल ताज महल का निर्माण में काफ़ी दौलत खर्च हो गया था और इतना सुन्दर इमारत बनने का चर्चा भारत का हर कोने कोन में होने लगा और यही उस लूटेरे को आकर्षित करने के लिए काफ़ी था उसे पता था, मुग़ल सल्तनत द्वारा बनाया गया ज़्यादातर इमारत लाल मिट्टी का है केवल ताज ही संगमरमर का है और इसे बनाने में काफ़ी दौलत खर्च होगा।

औरंगजेब भी इसी बात से परेशान था ताजमहल दुनिया का सबसे महंगा इमारत था उस ज़माने का और सबसे भव्य भी। शाहजहाँ का इमारतों को बनवाने का शौक कीमती ख़ज़ाने को लगभग आधा कर चुका था।

अब इस ख़ज़ाने पर दो लोगों का नज़र था एक ओर गुमनाम लूटेरा था दूसरा तरफ़ ख़ुद औरंगजेब था जो ये जानता था अगला बादशाह वो नहीं भी बन सकता है और बीच में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का नाक रखा हुआ था ख़ज़ाने को बचाने के लिए , इन द नेम ऑफ क्वीन।

औरंगजेब के दिमाग एक योजना ने जन्म लिया, उसका वालिद शाहजहाँ जिसे मूत्र रोग हो गया, कमज़ोर होने लगा था उसे किसी तरह ये एहसास दिलाया जाए कि ख़ज़ाना लूट लिया गया क्यूँकि ताजमहल के बाद बादशाह काला ताज का निर्माण अपने लिए करना चाहता था, ताजमहल अब लगभग पूरा हो चुका था।

उसने अपनी इस योजना को अंजाम देने के लिए बादशाह के जन्म दिन को इस काम को अंजाम देने के लिए चुना क्यूँकि उस समय बादशाह अब भी इतना ताकतवर था कि उसे बन्दी बनाना नामुमकिन था। उस समय तक बादशाह के कुछ ऐसे वफादार विशेष सैनिकों का अपना दल था जो उनके लिए अपना जान तक देने से पीछे नहीं हटता और दरबार में भी ऐसे वफादार मंत्री मौजूद हैं जिनका राजनीतिक हस्तक्षेप है फिर बादशाह का कई राज्यों से अच्छा संबंध था, औरंगजेब के लिए पहले उन्हें अपना ओर करने का ज़रूरत था और कुछ का हत्या।

उधर वो लूटेरा भी अपना दल का साथ इस ख़ज़ाने को बादशाह के जन्म दिन पर लूटने का योजना बना चुका था क्यूँकि उसी दिन शाही कोष खोला जाता था और ख़ज़ाने का नुमाइश दुनिया भर से आए मेहमानों का वास्ते होता था। यह सालाना जलसा हर साल अपनी ओर दूर दूर से कई लोगों को आकर्षित करता था। बादशाह के पास बहुत अधिक हीरे ज्वाहरात, बेश कीमती कोहिनूर, कई टन सोने का अशरफी चाँदी का सिक्का और बहुत कुछ था ख़ज़ाना में। हर साल जगह जगह का शाही परिवार अपना कीमती भेंट लेकर आता था और उसका जन्मदिन पर सोने , चांदी, हीरे मोती, और कई कीमती चीज़ों से तौला जाता था", कमांडर बताते बताते शांत हो जाता है जैसे कुछ सोच रहा हो।
-Ivan Maximus

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