पूजन और प्रेरणा की श्रेष्ठता का ज्ञान
इंसान आध्यात्मिकता के विचारों के जाल में और कर्मों और विश्वासों के खेल से अक्सर एक गहरी कथा बुनता है, जो हमारी दिव्यता की समझ को आकार देता है। कहा जाता है कि यदि किसी के कर्म किसी के शारीरिक या मानसिक कष्ट का कारण नहीं बनते, वह कर्म अच्छे होते हैं। ऐसे कर्मों से परमात्मा बिना पूजन किए भी खुश हो जाते हैं। अर्थात यह विचार धार्मिकता की मूल उपस्थिति का सूचक है। अच्छे कर्मों द्वारा किसी भी प्राणी की प्राथमिकता में उच्च स्थान प्राप्त करना ही इन विचारों का उद्देश्य है। आइए इन विचारों पर गहराई से मंथन करते हैं।
ऐसी दर्शनिकता में हमारी समझ और सहानुभूति का महत्व उजागर होता है। दूसरों को दर्द से बचाने से व्यक्ति खुद को एक उच्च उद्देश्य के साथ महत्वपूर्ण इंसान बनाता हैं, तब ईश्वर उसे बिना पूजन अथवा मंत्र जाप के प्रेम करते हैं और उसकी सद्भावनापूर्ण इच्छाओं को पूरा करते हैं। पारंपरिक पूजन की आवश्यकता से परे वह ईश्वर की अनन्य संतान कहलाता है। दया और कमज़ोर लोगों के बोझ को कम करके व्यक्ति ईश्वर के समान ही दर्जा प्राप्त कर सकता है। वह मानव अनुभव को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
इस प्रकार यह भी विचारणीय है कि यदि किसी की प्रतियोगिता किसी के दुख की ओर नहीं जाती, तो वह धार्मिकता के पथ पर है। भाषा के क्षेत्र में, शब्दों का बड़ा महत्व होता है। एक प्रेमभरा और सांत्वना देने वाला शब्द एक पीड़ित हृदय को सहानुभूति प्रदान कर सकता है और एक दिव्य संबंध की भावना को दोहराता है। इस प्रकार की संवादनशीलता व्यक्ति के बीच मानव संवाद और आध्यात्मिक उन्नति के बीच की गहराई को मिटाती है। इस प्रकार, दिव्य आदर्शों के असंख्य विचारों की महत्वपूर्णता उत्पन्न होती है।
प्रेरणा और पूजन में प्रेरणा श्रेष्ठ स्थान तब प्राप्त करती हैं जब मानव अपने पूजनीय के जीवन से प्रेरणा प्राप्त कर उनके पदचिन्हों पर चलने का प्रयत्न करते हैं। "राम राम" अथवा "राधे राधे" का उच्चारण करने से वह पदचिन्ह प्रदर्शित तो हो सकते है परंतु उस मार्ग का अनुसरण करने के लिए प्रेरणा की आवश्यकता होती हैं। ईश्वर इंसान की पूजा, अर्चना और जाप के अभिलाषी नहीं है। ईश्वर तो सत्कर्म, सद्भावना, प्रेम, करुणा, मीठी वाणी और त्याग के अभिलाषी है। क्योंकि जिन्हें मानव ईश्वर मानते है वह इन्हीं विशेष गुणों की धारणा से ईश्वर कहलाते हैं। जीवन का उद्देश्य पूजन द्वारा वरदान प्राप्त करना नहीं प्रेरणा द्वारा सत्कर्मों का ज्ञान प्राप्त करना होना चाहिए।
मैं नही जानती मेरे इन शब्दो और विचारों से कितने लोग प्रभावित और सहमत होते हैं और कितने लोग इन्हें असत्य घोषित करते हैं। क्योंकि मैं अभी इतनी महान और बलवान नहीं जो मेरे जीवन से मैं किसी को प्रेरणा या एक उचित मार्ग प्रदर्शित कर सकूं। परंतु मैं स्वयं ईश्वर से प्रेरणा लेकर उस मार्ग का अनुसरण करते हुए अपने जीवन को मूल्यवान और प्रेरणादायक बनाने के मार्ग पर तत्पर हूं। इसलिए यह विचार मंथन मेरी बुद्धि का अहम हिस्सा बने जिन्हे मैं आप से सांझा कर रही हूं।
पड़ने का वक्त निकालने के लिए धन्यवाद। आपका जीवन मंगलमय हो।
© Sunita Saini (Rani)
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