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हनुमान जी और पराक्रम
चैत सुदी पूनम मंगल कों जन्म वीर ने पाया है राम काज शिव शंकर ने हनुमान का रुप धराया है।
हनुमान जी का जन्म चैत्र मास पूर्णिमा तिथि मंगलवार को हुआं था। धर्म ग्रंथों
के अनुसार शिव शंकर ने ही हनुमान जी के रुप में अवतार लिया था।
श्री राम के सभी कार्य हनुमान जी ने ही सिद्ध किये है। फिर वो माता सीता का पता लगाना हो, अशोक वाटिका में
श्रीराम की मुद्रिका सीता जी तक पहुंचानी है
उन्हें भरोसा दिलाना हो कि श्रीराम शीघ्रातिशीघ्र अवश्य आयेंगे और अपनी प्रिय पत्नी सीता को रावण की कैद से छुडा ले जायेंगे,संजीवनी बूटी लानी हो , रावण के नागपाश से राम लक्ष्मण दोनों भाइयों को मुक्त
कराना हो या फिर अहिरावण को राम लक्ष्मण
की बलि देने से रोकना है।
सीता हरण के पश्चात सीता जी का पता लगाने के लिए समूह के समूह विभिन्न
दिशाओं में भेजे गए। लेकिन राम नाम अंकित
मुद्रिका प्रभु ने हनुमान जी को ही सौंपी थी क्योंकि श्रीराम को पूरा भरोसा था कि सीता का पता हनुमान जी ही लगा पायेंगे। हनुमान जी के अतिरिक्त किसमे इतनी सामर्थ्य थी जो
सात योजन लम्बे और विशाल समुद्र (जिसका
कोई ओर न छोर)को लांघ जाता।
जब युद्ध में मेघनाद ने लक्ष्मण जी को शक्ति बाण मारकर मूर्छित कर दिया तो
श्रीराम की पूरी सेना घबरा गई थी।अब क्या होगा!भाई को इस मूर्छित अवस्था में देखकर राम जैसा धीर,वीर विवेकी पुरुष भी घबरा गया
हनुमान जी सुषेण वैद्य को लेकर आए
लक्षमण जी की नब्ज देखकर वैद्य ने कहा कि
यदि संजीवनी बूटी सूर्योदय से पहले आ जाये तो लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं। हनुमान जी के अतिरिक्त बूटी कौन ला सकता था। हनुमान
पवन वेग से उड़े और अनेकों बाधाओं को पार करते हुए संजीवनी बूटी तक पहुंच गये। उन्हें देर होती देख प्रभु विलाप करने लगे।
नयन भर -भर कर प्रभु रोते
हाय लखन अपनी माता के
पुत्र तो थे इकलौते
प्रभु रुदन करें महान
हनुमान तुम्हें भगवान बुलाते हैं
उदय हो न जाए भानु ,हो न जाए देर
आ लौट के आजा हनुमान
तुम्हें भगवान बुलाते हैं
इतने में हनुमान जी आ गये मानों करूणा रस में वीर रस का आगमन हो गया।
राम -लक्षमण को नागपाश में बांधने के समय पर भी किसी को कुछ नहीं सुझ रहा था। रावण ने ऐसे बाण का संधान किया था, जिससे सर्प निकले और उन्होंने दोनों भाइयों राम और लक्ष्मण को लपेट लिया
चतुर निधान हनुमान जी ने संकट को समझा
और पक्षीराज गरुड़ को लाने चल दिए। गरूड़
ने सर्पों को अपनी चोंच से विदीर्ण कर दिया इस तरह प्रभु राम और लक्ष्मण दोनों को सुरक्षित देख पूरी सेना में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। हनुमान जी ने अपने चातुर्य से इतने बड़े संकट को टाल दिया। इसीलिए तो इन्हें संकटमोचन कहते हैं
रावण जब किसी भी प्रकार
प्रभु राम पर विजय प्राप्त न कर पाया तो वह अपने भाई अहिरावण के पास गया और उससे
अपनी कुल देवी निकुंबला के सामने राम और
लक्षमण की बलि देने को कहा।बलि की सारी तैयारियां होने लगीं तत्काल ही हनुमान जी वहां पहुंचे और अहिरावण का उसकी सेना सहित संहार कर दिया।
हनुमान जी के समान बलवान न
कोई हुआ है और न होगा। उनकी चतुराई का
कोई सानी नहीं।उनकी बुद्धिमत्ता को प्रभु ने अनेक बार स्वीकार किया है। ऐसा कौन सा कार्य है जो हनुमान जी की क्षमता सीमा से परे है।
कवन सो काज कठिन जग माहीं
जो न हुइ तात तुम पाईं

रामचरितमानस
© सरिता अग्रवाल