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प्रेम: एक परिकल्पना ( Love :Very Lovely )
सिर्फ स्व-हित ही न अन्तर्निहित हो,
उपकार की वो भावना प्रेम है,
प्रेम नहीं है, महज दो लोगों ( प्रेमी-प्रेमिका या युगल कोई)
की बपौती,
ये तो स्वतः ही व्यक्तित्व से सम्बद्ध है,
ये अन्तरमण्डल से मुखमण्डल तक,
हो उठे , स्वतः ही सुशोभित , इसमें है वो नैसर्गिक सौंदर्य समाहित,
प्रेम ही वह कारक है, जो समष्टि की मूल धरा है,
प्रेम से ही सम्बद्घ होते, रिश्ते नाते दोस्त,
नाम(रिश्ते का) तो वस्त्र मात्र ,
सबके अंदर विद्यमान है केवल प्रेम ही गात,
गिनने...