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मेरा अराध्य मेरा इश्क़....
उसदिन सुबह से ही सूरज मे आग बहुत तेज धधक रही थी जैसे उसने ठान ही लिया था आज सबकुछ जला के खाक कर देना है।
इतनी क्रूरता की वजह मै आजतक नही समझ पाया, क्या बिगाडा था मै उसका या किसी का भी, बस इस दुनिया से अलग एक छोटी सी दुनिया बसाने हिमाकत की थी।
सुना था प्यार से बढकर कोई जज्बात नही है प्यार ही हर रिश्ते का आधार है, तो मैने क्या गुनाह किया ,जो प्यार किया..??
एक मै ही तो नही हूँ जिसने इश्क़ किया ?
दुनिया जबसे बनी है लोग प्यार करते आए है, जिसने जिसको समझा उसे चाहा, घर बसाया, मैने ऐसी क्या खता करी ?? ये मै उस समय सोचता था और सवाल अनगिनत थे मेरे इश्वर से, समाज से, पर जवाब नही दिए जाते ऐसे सवालों के बस फैसला सुनाया जाता है, " तुम्हे जिंदा रहना है मगर बिना जिंदगी के, मुसकुराना है मगर बिना किसी खुशी के, सांस तो मिलेगी तुम्हें, मगर बिना धडकनों के।
ऐसी सजा उनको कभी नही दिए जाते जो अपनी जरूरत समझकर, अपने मतलब के लिए किसी की चाह करते है, ‌क्यूकी वो दुनिया मे आकर दुनिया दारी निभाना जानते है वो इश्क़ नही करते चाह करते है और हासिल करते है।
सजा तो उन्हे दी जाती है जो हासिल नही किसी मे खुद को फना करने की जिद लिए बैठते है, इतिहास बनाने के लिए इश्वर उन्हे चुनते है जिनके ह्रदय मे इश्क़ की दीवानगी होती है जिन्हे खाक मे मिल जाने का खौफ नही होता, मगर तब मुझे अपने सवालों के जवाब नही मिले थे ‌, जवाब तब मिले जब मै, मै ही नही रहा हो गया मै इश्क़ मे मलंग।
जिक्र मै उसदिन की कर रहा था जिसदिन मै खाक हो रहा था पूरी तरह , मेरी चाहतों की नगरी जल रही थी और मै खडा रहने की स्थिति मे भी नही था जमीन पर लोट रहा था,
तडप रहा था, पर क्रूर नियति को जरा भी रहम नही आया, उसदिन तो मैने बहुत कोसा, भला बुरा कहा पर आज सोचता हूँ नियति चाहे कितने क्रूर खेल खेल ले पर उसकी मंशा बहुत ही नेक होती है ऐसे फैसले वो सबके लिए नही लेती जिसके लिए लेती है वो इंसान साधारण नही हो सकता कभी , वो ही जमाने मे इतिहास रचता है ।
उसदिन मेरी आंखों से मेरे सपने नोंच लिए गये थे, मेरी सारी हसरतों को हमसे छीन लिए गये थे, जो बनाई थी, सजाई थी वो बाग उजाड दिया गया था मेरे पास कुछ नही बचा था, बस मै तन्हा बचा था ,नितांत तन्हा जहाँ मै अपनी सिसकियां खुद ही सुनता रहा, आंसू खुद ही पोछता रहा और मेरे सारे सपने किसीकी विवाह वेदी मे मंत्रो चार के साथ हवन हो गये