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//पहली मुलाकात//
आज सुबह होने से पहले ही मैं जाग गई, या यूं कहूं कि 'सागर' के साथ मिलने जाने की बेचैनी और खुशी के कारण मैं रात भर सोई ही नही थी। रात भर उसके साथ सपनों में घूमती रही। सबके जागने से पहले ही मैं जाग चुकी थी और तैयार होकर सुबह के होने का इंतज़ार कर रही थी बार- बार शीशे में खुद को देखकर खुद से ही शर्मा रही थी, और रह रहकर घड़ी देखती और सोचती कहीं मुझे पहुंचने में देर ना हो जाए।
माँ आज काफ़ी हैरान थी मुझे देखकर, कि मैं आज उनके बिना जगाए ही कैसे उठ गई और उनके उठने से पहले ही नहा धोकर तैयार कैसे हो गई। आज मैने उनके बिना कहे ही पौधों में पानी भी डाल दिया था।
आज "बस स्टैंड"में भी शायद मैं ही सुबह की सबसे पहली यात्री थी, कुर्सी पर बैठकर मैं सिर्फ उसी के बारे में सोचे जा रही थी, कॉलेज की एक एक बाते जो उससे तालुकात रखती थी मुझे अंदर से गुदगुदा रही थी,उसका मेरे तरफ बार बार देखना, नए नए बहाने बनाकर हर दिन मुझसे मिलना, बस स्टॉप में मेरा इंतज़ार करना और ना जाने कितनी ही बातें थी जो मेरे स्मृतियों को पल भर के लिए भी नही छोड़ रही थी।आज सारा समा हसीन लग रहा था, सुबह का मौसम मुझे हमेशा से ही पसंद है, पर आज तो सब कुछ नया सा लग रहा था, ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो खिलती धूप, मृदुल हवा,खिले फूलों से हंसता हुआ पेड़,रास्ते, गाती हुई पंछियां सब मुझसे मेरी खुशी का राज पूछ रहे हो, इधर - उधर मेरी नज़र उसे ढूंढ़ रही थी के अचानक मैंने उसे देखा सफ़ेद कमीज़ के ऊपर नीली धारियां और काले रंग का साधारण पैंट पहना हुआ था, ये वही लिबाज़ था कॉलेज में मैने जिसकी तारीफ करते हुए कहा था, "सागर जी आज आप बहुत अच्छे लग रहे है",और बड़े सहजता से कहा था "मुझे सफेद और काली रंग बहुत पसंद हैं" उसी लिबास में वो आज...