खुलकर कहा तो होता..
मुक्ता का सारा शरीर कांप रहा था , चेहरा सफेद पड़ गया था , गिर पड़ी थी वह फर्श पर , उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था , जाने कब तक वह उसी अवस्था में पड़ी रही । उसकी तंद्रा टूटी जब कॉल बेल बजी । वह किसी तरह उठी उसने दरवाजा खोला सामने प्रत्यक्ष खड़ा था । हड़बड़ी में था । वह बोला……
“मुक्ता मैंने अपना मोबाइल फोन छोड़ दिया था , आधे रास्ते से लौट कर आ रहा हूं । जल्दी दो , ऑफिस जल्दी पहुंचना है ।”
उसने मुक्ता के चेहरे की ओर बिना देखे , एक झटके में सब कुछ कह दिया । मुक्ता का शरीर जड़ हो गया था । फिर भी उसने अपने आप को सहज बनाते हुए चुपचाप मोबाइल प्रत्यक्ष के हाथों में पकड़ा दिया ।
प्रत्यक्ष चला गया था । मुक्ता टेरेस पर खड़ी प्रत्यक्ष को तब तक निहारती रही जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गया । आज प्रत्यक्ष उसे अजनबी और बदला-बदला सा क्यों लग रहा था……?
मुक्ता के ऑफिस में आज छुट्टी थी इसी कारण वह आज घर में थी । ‘छुट्टी’ शब्द हीं अपने आप में एक खुशनुमा मौसम की तरह होता है । कल से ही उसने जाने कितनी योजना बना रखी थी । रात में सोते समय वह सोच रही थी………
“सुबह में प्रत्यक्ष के जाते ही सबसे पहले मैं पूरे घर को व्यवस्थित करूंगी । इधर इतनी व्यस्तता रही कि चाह कर भी घर में समय नहीं दे पाई । फिर प्रत्यक्ष के पसंद की कोई डिश बनाऊंगी । शाम में प्रत्यक्ष के आने के बाद जब वह थोड़ी देर आराम कर लेगा तो उसे लेकर बीच पर जाऊंगी । आज शाम हम लोग समंदर की लहरों के साथ बिताएंगे । वर्क लोड के कारण इधर हम लोगों ने आपस में ढंग से बातें भी नहीं की है । आज प्रत्यक्ष के साथ वो कसर भी पूरा कर लूंगी । ”
चेहरे पर मुस्कान लिए जाने कब मुक्ता गहरी नींद में चली गई उसे पता भी नहीं चला । किंतु यह क्या……..? पास खड़ी नियति उसे देख व्यंग से हंस रही थी ।
“आज भर चैन की नींद ले लो कल से नहीं ले पाओगी ।”
मुक्ता जब कॉलेज में थी उस समय प्रत्यक्ष उसके जीवन में आया था । और कब प्रत्यक्ष उसके पूरे अस्तित्व का हिस्सा बन गया , उसे पता तक नहीं चला । स्वभाव से बिल्कुल सपाट , अंतर्मुखी और प्रेम-प्यार जैसे शब्दों के प्रति बिल्कुल उदासीन सी मुक्ता ने प्रत्यक्ष को देखकर जाना कि किसी से प्रेम करना कितना खूबसूरत होता है । और जिस दिन मुक्ता ने अपने सारे दायरे तोड़ कर प्रत्यक्ष के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा तो , प्रत्यक्ष सहर्ष तैयार हो गया ।
किंतु यह आसान नहीं था । दोनों को ही इस विवाह को अंजाम देने के लिए परिवार को कितना समझाना पड़ा था । उन्हें राजी करने के लिए दोनों ने एड़ी चोटी लगा दी थी । इसके लिए संघर्ष करते हुए चार साल बीत गए तब जाकर उनकी तपस्या पूरी हुई ।
प्रत्यक्ष का मुक्ता के जीवन में आना मानो प्रेम के सागर में समा जाने जैसा ही था । विवाह के बाद विचित्र सी हो गई थी मुक्ता । एक पल भी प्रत्यक्ष से दूर रहना नहीं चाहती थी । प्रत्यक्ष की बाहों के घेरे हीं उसकी पूरी दुनिया...
“मुक्ता मैंने अपना मोबाइल फोन छोड़ दिया था , आधे रास्ते से लौट कर आ रहा हूं । जल्दी दो , ऑफिस जल्दी पहुंचना है ।”
उसने मुक्ता के चेहरे की ओर बिना देखे , एक झटके में सब कुछ कह दिया । मुक्ता का शरीर जड़ हो गया था । फिर भी उसने अपने आप को सहज बनाते हुए चुपचाप मोबाइल प्रत्यक्ष के हाथों में पकड़ा दिया ।
प्रत्यक्ष चला गया था । मुक्ता टेरेस पर खड़ी प्रत्यक्ष को तब तक निहारती रही जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गया । आज प्रत्यक्ष उसे अजनबी और बदला-बदला सा क्यों लग रहा था……?
मुक्ता के ऑफिस में आज छुट्टी थी इसी कारण वह आज घर में थी । ‘छुट्टी’ शब्द हीं अपने आप में एक खुशनुमा मौसम की तरह होता है । कल से ही उसने जाने कितनी योजना बना रखी थी । रात में सोते समय वह सोच रही थी………
“सुबह में प्रत्यक्ष के जाते ही सबसे पहले मैं पूरे घर को व्यवस्थित करूंगी । इधर इतनी व्यस्तता रही कि चाह कर भी घर में समय नहीं दे पाई । फिर प्रत्यक्ष के पसंद की कोई डिश बनाऊंगी । शाम में प्रत्यक्ष के आने के बाद जब वह थोड़ी देर आराम कर लेगा तो उसे लेकर बीच पर जाऊंगी । आज शाम हम लोग समंदर की लहरों के साथ बिताएंगे । वर्क लोड के कारण इधर हम लोगों ने आपस में ढंग से बातें भी नहीं की है । आज प्रत्यक्ष के साथ वो कसर भी पूरा कर लूंगी । ”
चेहरे पर मुस्कान लिए जाने कब मुक्ता गहरी नींद में चली गई उसे पता भी नहीं चला । किंतु यह क्या……..? पास खड़ी नियति उसे देख व्यंग से हंस रही थी ।
“आज भर चैन की नींद ले लो कल से नहीं ले पाओगी ।”
मुक्ता जब कॉलेज में थी उस समय प्रत्यक्ष उसके जीवन में आया था । और कब प्रत्यक्ष उसके पूरे अस्तित्व का हिस्सा बन गया , उसे पता तक नहीं चला । स्वभाव से बिल्कुल सपाट , अंतर्मुखी और प्रेम-प्यार जैसे शब्दों के प्रति बिल्कुल उदासीन सी मुक्ता ने प्रत्यक्ष को देखकर जाना कि किसी से प्रेम करना कितना खूबसूरत होता है । और जिस दिन मुक्ता ने अपने सारे दायरे तोड़ कर प्रत्यक्ष के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा तो , प्रत्यक्ष सहर्ष तैयार हो गया ।
किंतु यह आसान नहीं था । दोनों को ही इस विवाह को अंजाम देने के लिए परिवार को कितना समझाना पड़ा था । उन्हें राजी करने के लिए दोनों ने एड़ी चोटी लगा दी थी । इसके लिए संघर्ष करते हुए चार साल बीत गए तब जाकर उनकी तपस्या पूरी हुई ।
प्रत्यक्ष का मुक्ता के जीवन में आना मानो प्रेम के सागर में समा जाने जैसा ही था । विवाह के बाद विचित्र सी हो गई थी मुक्ता । एक पल भी प्रत्यक्ष से दूर रहना नहीं चाहती थी । प्रत्यक्ष की बाहों के घेरे हीं उसकी पूरी दुनिया...