"गुलाब का एक बेरंग फूल" भाग-3 मनी मिश्रा
,. ..... मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह मेरी बेरुखी भाप गया हो।
" वह चुप रहा "......उसे यूँ चुप देख मुझे अच्छा नहीं लगा था ।
इसलिए लगभग उसकी ओर मुड़ते हुए मैंने पूछा" अच्छा बता भी दो गुलाब का" लाल फूल" क्यों अच्छा नहीं लगता तुम्हें "...
मैंने लाल फूल पर जोर डालते हुए कहा था ।कुछ देर बाद उसने मेरी आंखों में घुरते हुए कहा "बस मुझे प्यार का यह लाल रंग अच्छा नहीं लगता "...उसके चेहरे पर एक मायूसी सी थी ।
"तो सफेद भी है" उसे ही अपने प्रेम का रंग मान लो! इतना सुनते ही वो मुस्कुराया, वह मुझे नहीं जानता था ! इसलिए वह मेरा नाम न ले सका,
लेकिन उसने कहा "एक बात कहूं मिस........सच तो यह है कि प्रेम का कोई रंग नहीं होता" क्या लाल, क्या सफेद,क्या नीला' गौर से देखो...
" वह चुप रहा "......उसे यूँ चुप देख मुझे अच्छा नहीं लगा था ।
इसलिए लगभग उसकी ओर मुड़ते हुए मैंने पूछा" अच्छा बता भी दो गुलाब का" लाल फूल" क्यों अच्छा नहीं लगता तुम्हें "...
मैंने लाल फूल पर जोर डालते हुए कहा था ।कुछ देर बाद उसने मेरी आंखों में घुरते हुए कहा "बस मुझे प्यार का यह लाल रंग अच्छा नहीं लगता "...उसके चेहरे पर एक मायूसी सी थी ।
"तो सफेद भी है" उसे ही अपने प्रेम का रंग मान लो! इतना सुनते ही वो मुस्कुराया, वह मुझे नहीं जानता था ! इसलिए वह मेरा नाम न ले सका,
लेकिन उसने कहा "एक बात कहूं मिस........सच तो यह है कि प्रेम का कोई रंग नहीं होता" क्या लाल, क्या सफेद,क्या नीला' गौर से देखो...