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एक गधे की
बहूत पहले मैंने एक किस्सा पड़ा था उस किस्से की मुख्य शीर्षक था गधा चला गंधर्व नगर । मैं बाज़ार जा रहा था मुझको रास्ते में भीड़ के साथ चल रहा एक गधा दिखाई दिया तो मैं अवाक रह गया मैं सोचने लगा देखो इस गधे की किस्मत अच्छे खानदान में पैदा तो हो गया मगर बेचारा मूर्खता को क्या करता वह तो चोली दामन के साथ की तरह उससे चिपके हुए थे एक बात और गधे को कितना ही चलाया जाए कितना ही दौड़ाया जाए कितने ही बागीचे हरे भरे मैदान दिखाएं जाए क्या उसकी सोच कुछ बदल सकती है सिवा खाने के और अंधे की तरह दौड़ने के
तो गधा सारी दुनियां का भ्रमण करने निकल पड़ा उसके साथ उसी की तरह सोचने वाले कुछ और गधे भी निकल पड़े गधे की सोच में जो समझ थी वह मुर्ख की तरह ही थी जो कि उसकी जन्मजात नींव में भरी पड़ी थी वह कितने भी रंग लगा कर अपने आप को बदल लें मगर रहेगा वह गधा का गधा ही, दिखावे की कोशिश कर क्या वह गधा शेर की खाल ओढ़कर लोगों को धोका दे सकता है किसी मरे जानवरों के नाखूनों के पंजे और दांतों से वह यह साबित करने की कोशिश करे की वह शेर है शिकार कर सकता है तो ऐसे दिवास्वपन देखने वालों का क्या अंजाम होना है यह तो कोई मूर्ख भी बता सकता है तो बेचारा गधा जोश में आकर अपने नमूने साथियों की मदद से दुनियां को फतह करने निकल पड़ा पहले वह सिर्फ़ भ्रमण करने की ही सोचता था पर नकली नाखून पंजों और दांतों ने उसे बहका दिया वह सरपट दौड़ा चला जाता था और उसे दुनिया जीतने की फिक्र लग गई थी कि वह एक दिन में ही दुनिया जीत ले किंतु अक्ल और शक्ति के जोड़ बिना क्या किया जा सकता है
आखिर को तो वह गधा था बेचारे को बात करने की तमीज भी नहीं थी उसके साथ चलने वाले गधे अपनी अटकलों से उसका दिल बहलाते और नये नये सुझाव देते चलते थे सबकी अपनी चाहते मनसूबे थे इस गधे को सामने रखकर जो वैसे भी अत्यधिक मूर्ख था सभी अपना मतलब साधने के लिये बैचेन थे बेचारे गधे की मां ने भी ताकीद की थी कुत्तों की भीड़ से शायद मदद अच्छी मिल जाए तो वह कुत्तों का हमदर्द बनने की कोशिश करने लगा कुत्तों का हुजूम जानता था की उनका फायदा किस तरह बढ़ सकता है वह खून पीने वाले शैतान के चेले कब आए मौके को छोड़ते
तो वे भी उसकी सेना का हिस्सा बनने को तैयार हो गये धीरे धीरे ऐसे ही मतलब परस्तों से भीड़ बड़ी हो गयी पता नहीं राहुल बाबाजी की तरह उसकी सभा में भीड़ बढ़ती जाती थी और वह गधा भी मस्ताया हुआ मटर गस्ती करता कुछ भी बकता झकता आगे बढ़ा जाता था
अंततः एक दिन एक असल शेर सामने आ ही गया और शेर के करारे प्रहारों से गधे और कुत्तों में हड़कंप मच गया और कुत्तों की फुर्ती भी कुछ काम न आई बुरी तरह से शेर ने उन्हें चीर फाड़ दिया और कुछ ही देर में शेरनी वो उसके बच्चों ने भी इस युद्ध में भाग लेकर सारी भीड़ को खत्म कर दिया बचे कुते और जो दौड़ कर जान बचा सकते थे ऐसे गधे अपनी जान बचाने में सफल हो गये
सार यही था कि कोई आपका कबाड़ा करना चाहता हो तो ऐसों की नीयत को समझने की अक्ल आपके अपने अन्दर होनी चाहिए न कि फिसड्डी राम की तरह जलती आग में खुद को जला देना चाहिए अरे जब औकात अक्ल दोनों न रहे तो सपने देखने से भी डरना चाहिए नहीं तो हश्र तो गधे की तरह होना ही है ।
अक्ल से जिनका रिश्ता कोसों दूर हो ऐसों की शाही सवारी का अंजाम देखने के बाद बहूतों के दिल जान चुके होते हैं कि ये अंगूर खट्टे हैं इन पर समय जाया करना, अपनी फजीहत करने के सिवा और कोई काम की सिद्धि नहीं करेगा ।


© सुशील पवार