...

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वो मिले थे...
ज़ख्म की परवाह न मेरे दर्द का लिहाज़ कर,
पूरा हक़ है जैसे चाहे वैसे मेरा तू इलाज़ कर.

तुम्हें अपनी जिंदगी का, मसीहा मान लिया,
इल्तज़ा मान ले देख इस तरह न नाराज़ कर.

गर्म, दिलों दिमाग रखने से, क्या है हासिल,
चंद घड़ी के वास्ते, नर्म अपना मिजाज़ कर.

इश्क़ की साहब, कोई जात ही, नही होती,
देख बे - वजह धर्म, रिवाज़, न समाज कर.

कल के लिए रोया, उसने, आज को खोया,
बात पे कर गौर जो भी करना है आज़ कर.
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बुझा बुझा सा है दिल, फिर भी, जल रहा है,
यकीनन दिल में कुछ न कुछ तो चल रहा है.

खामोश जुबां, आंखों मे है, अश्कों के धारे,
लगता है, पुराना दर्द दिल में ही, पल रहा है.

दबे से एहसासों को दी अल्फाजों की शक्ल,
दिल का गुबार इस तरह अब निकल रहा है.

चेहरे पे लगा के नकाब हुए भीड़ में शामिल,
अपने जीने के तरीके, अब वो बदल रहा है.

कौन है वो, उसे मेरे सामने तो, लाओ ज़रा.
संभाले से, जिनका दिल अब संभल रहा है.

मेरा दर्द पढ़कर उन्हें मिलती है अब खुशी,
चल इस बहाने उनका दिल तो बहल रहा है.
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वो मिले थे, दिल में दर्द बोने के लिए,
उन्हें पाया भी तो सिर्फ खोने के लिए,

सारे अपने पराओ से दूर हो गए हम,
एक सिर्फ उनके ही तो, होने के लिए.

इसे रोकना मेरे बस की बात नहीं थी,
आई याद मेरी पलकें भिगोने के लिए.

चांद तारों से, कुछ बातें, कर लेती हूं,
फिर, सारी रात पड़ी है, सोने के लिए.

दिल का लगाना आसां काम नही है,
दिल मज़बूत रखा, गम ढोने के लिए.

हर किसी से मुस्कुराकर ही मिली हूं ,
ये सोच के, उम्र पड़ी है रोने के लिए.
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© एहसास ए मानसी