...

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भूत हूँ मैं...
मालूम है मुझे ...
मेरा भूत होना
तुम्हें नहीं सुहाता है
मेरा यूँ बरगद पर लटकना भी
तुम्हे बहुत परेशान करता है...
रास नहीं आता है !

मरे जा रहे हो ,
मेरी मुक्ति ढूंढने में
कभी कौओं को
खाना खिला रहे हो
तो कहीं पिंडदान को
गंगा घाट जा रहे हो
कभी सोरौंजी के
पंडों को चढ़ावा चढ़ाकर,
मेरी गाढ़ी मेहनत की कमाई को
ठिकाने लगा रहे हो .

किसके लिए...!
समझों !
अब मैं ,तुम्हारा बाप नहीं हूँ...
तुम्हारे बाप के चोले से निकल कर
पूरी तरह , उन्मुक्त हूँ , आबाद हूँ ......
एक खुशमिजाज भूत हूँ
मुक्ति की ख्वाहिश , क्यूँ होगी
मैं तो पहले ही आजाद हूँ ...
बेहतर है कि ,अब तुम मुझे
भूत ही रहने दो .

पूरी ज़िंदगी तो तुम लोगों के
हिसाब से ही...