...

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अर्जुन
भाग-10
कमरे में एकदम सन्नाटा छाया हुआ था। असमी ने अपनी चुपी तोड़ते हुए धीमी सी आवाज में पूछा,

असमी–क्यों आई हैं आप अब यहां पर

देवकला ने हैरानी से असमी की और देखा और खड़ी होकर उसके पास चली गई, उसने इसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोली

देवकला – क्यों क्या तुम अपनी नानी को देखकर खुश नही हो

असमी थोड़ा सा मुस्कुराई पर उसकी आंखे आंसुओ से भरी हुई थी उसने देवकला की आंखो में देखा और बोली
असमी –खुश , होती जरूर होती पर आपने आने में बहुत देर करदी। वो बच्चे जो अपनो के आने की राह देखते थे वो तो कभ के मर चुके हैं

देवकला –नही , ऐसी अशुभ बाते नही करते बेटा मैं जानती यह सभ तुम्हारे लिए आसान नहीं था

असमी– कुछ नही जानती आप और ना ही समझ सकती हे हमने अपनी ज़िंदगी किन हालातो में बिताई है यह सिर्फ हम ही जानते है समझी आप।

असमी ने अपनी आवाज ऊंची करते हुए कहा।

अर्जुन –असमी

असमी –क्या असमी ये अब आई है हमे देखने तब कहा थी यह जब हम भूख के मारे तड़प रहे थे। अरे तब कहा थी जब हमे बिना किसी गुनाह के रोज बेज़जत किया जाता था और मारा जाता था। कहा थी ये जब हमे इन सबकी सबसे ज्यादा जरूरत थी।

अर्जुन ने असमी को घूरा और वो गुस्से में कमरे के बाहर चली गई।

देवकला उदास मन के साथ बिस्तर पर बैठ गई। अर्जुन उसके पास गया और बोला

अर्जुन –उसे माफ कर दिजिए नानी पर अब हम दोनो अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ गए है और खुश है।आप बताइए मां और पिता जी कैसे है।

देवकला ने अर्जुन का हाथ पकड़ा और रोने लगी,

देवकला– कुछ भी ठीक नहीं है सब कुछ खत्म हो गया। पूरी देवनागरी तबाह हो गई और तुम्हारे मां पिता जी भी उस तबाही में मारे गए।

असमी ने जब यह सुना तो उसके हाथ में जो खाने की थाली थी वो फिसल कर नीचे गिर गई । अब तक जो उसने और अर्जुन ने अपनी आंखे में आंसू रोक हुए थे वो आंखो से बाहर आने लगे ।वो दोनो तो मानो सुन हो गए हो। जिस दुनिया में जाने का वो इंतजार किया करते थे जब पता चला की वो दुनिया ही खतम हो चुकी है।




© khushpreet kaur