...

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तुम... हाँ, मैं
तुम!

हाँ, मैं।

कौन हो तुम?

मैं?

हाँ, तुम?

मैं, मैं एक पुरुष, और तुम?

मैं एक स्त्री।

ओह! स्त्री होकर पर-पुरुष से बात करती हो। तुम्हारा पति तुम्हे कुछ नहीं कहता।

(हँसते हुए) कहते हैं, बहुत कुछ कहते हैं, पर कदाचित सुन नहीं पाओगे तुम। और...
और अगर सुन लिया तो सह नहीं पाओगे तुम।

अरे! बताओ न।

(तभी पीछे से एक मधुर स्वर सुनायी देता है...)

सुनिए

हाँ, बोलो दिख नहीं रहा क्या कि मैं एक निरीह स्त्री से बात कर रहा हूँ। कब समझ आएगी तुम्हे।

वही मृदु स्वर- जी, क्षमा।

अच्छा, हे स्त्री कुछ बता रही थीं तुम।

नहीं, कुछ नहीं, भूल गयी थी कि तुम भी पुरुष ही तो हो!

© Shweta Gupta