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गणेश चतुर्थी
"गणेश चतुर्थी" एक मंगलकारी त्योहार जिस दिन हम अपने घरों में श्री गणेश महाराज जी की स्थापना करते हैं।
किंतु,श्री गणेश महाराज जी को स्थापित करने का तात्पर्य है क्या? क्या हमने कभी विचार किया?
विचार कीजिए:-

"गणेश" अर्थात सभी गणों का ईश(रचयिता,मालिक)। अब ये "गण" क्या हैं ये भी तो जानना ज़रूरी है। बहुत से अर्थ है इस शब्द के,फिर भी सबसे महत्वपूर्ण अर्थ है-
तालमेल बनाए रखने का माध्यम।
कैसे?

आपको अक्सर लोग कहते हुए मिलेंगे कि:-
यार! मेरा गण नहीं मिलता उससे अथवा मेरी बनती नहीं उससे। किसी-किसी का गण हर एक के साथ बहुत अच्छा होता है अथवा जल्दी मिल जाता है(यहाँ ध्यान दीजिए- गण मिलने से तात्पर्य है तालमेल का स्थापित होना और सारे संबंधों का आधार भी तो तालमेल ही है वास्तव में।)

दूसरा अर्थ "गण" का:-
संपूर्ण ब्रह्मांड में जितने भी ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं और अपनी दिशा बदल रहे हैं,ये सब भी गणों के आधार पर ही हो रहा है(जो वैज्ञानिक तौर पर खरा उतरता है)।
आप लोग अपनी कुंडली दिखाते हैं,वो भी गणों के आधार पर। अगर गण ना मिले तो कभी-कभी विवाह संपन्नता की शुरूआत भी नहीं हो पाती।

हमारे जीवन के तालमेल से लेकर संपूर्ण सृष्टि के तालमेल में गणों का महत्वपूर्ण योगदान है। तो

पुनः विचार कीजिए कि:-

{श्री गणेश महाराज जी जो इन सभी गणों के ईश हैं हमारे मन के अंदर स्थापित होंगे तो तालमेल का उदय होगा हमारे भीतर जो "चतुर्थी" अर्थात चार अर्थ(धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष) को साकार करेगा।}

कैसे?
जब हम "धर्म" को धारण करेंगे स्वयं के भीतर तब हमें "अर्थ" समझ आएगा जो हमें समझाएगा कि "काम" कैसे करना है और इस "अर्थ" के आधार पर "काम" करने से ही हमें प्राप्त होगा "मोक्ष" जिसके लिए श्रीकृष्ण वासुदेव जी ने कर्मयोग की व्याख्या की।

कर के मिलना ही मोक्ष है।

तो आप कब श्री गणेश महाराज जी को अपने भीतर स्थापित कर चतुर्थी को साकार कर रहें हैं?
स्वयं से ये प्रश्न अवश्य कीजिएगा।

© beingmayurr