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जली कटी
बड़ी आई कलेक्टर कहीं की..!
कहां चली महारानी ...कॉलेज!!!ये बर्तन का ढेर क्या अल्लादीन का जिन्न साफ करेगा चल पहले ये सब साफ कर फिर जाना ....बड़ी आई पढ़ाई करने वाली ...जैसे कलेक्टर ही बन जायेगी ....अरे मुई लड़की कित्ता भी पढ़ ले लिख ले घर केकाम तो करने ही पड़ेंगे समझी ...!
मां की जली कटी को अनसुना सी करती गुड्डन बोल उठी और अगर कलेक्टर बन गई तो...!!तब तो ये सब काम नहीं करना पड़ेगा ना...! फिक्क से हंसती गुड्डन की बात ने तो मानो मां के तन बदन में आग ही लगा दी थी वहीं पड़ा डंडा दिखा कर चीख पड़ी चल चल बड़ी आई कलेक्टर कहीं की!!मुंह देखा है अपना आईने में!!आज तक इस खानदान में किसी आदमी को अधल्ली की नौकरी भी नहीं मिली तू लड़की होकर आई बड़ी कलेक्टर का ख्वाब देखने वाली!!घर में नही दाने अम्मा चली भुनाने..!
फुर्ती से बर्तन धोकर गुड्डन किताबें संभालती कॉलेज पहुंची तो प्रिंसिपल उसका इंतजार ही कर रहे थे.. गुड्डन तुम्हें इस बार सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के कारण कॉलेज की तरफ से सिविल सेवा प्रतियोगिता की मुफ्त कोचिंग प्रदान की जाएगी ...!अंधा क्या चाहे दो आंखें गुड्डन की तो सबसे बड़ी समस्या हल हो गई थी।

समय की रफ्तार से भी तेज हो गई थी गुड्डन की सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी और पढ़ाई की रफ्तार ....और साथ ही मां के जहर बुझे तानों की रफ्तार.....!!

सुबह के अखबार में गुड्डन की बड़ी सी फोटो छपी थी.." कस्बे की लड़की अब बनेगी कलेक्टर ..प्रथम बार सिविल सेवा परीक्षा में कस्बे ने सफलता प्राप्त की..."!
पैर छूती गुड्डन से आंख नहीं मिला पा रही थी मां ..डबडबाई आंख और अवरुद्ध कंठ था मुझे माफ कर दे बेटी बचपन से तुझे जली कटी सुनाती आई काम करवाती रही पढ़ाई से दूर करती रही सोचती थी लड़की के नसीब में यही चूल्हा चौका ही लिखा होता है तूने तो अपना ही नहीं पूरे खानदान का नसीब बदल दिया !!
मां तेरी जली कटी का ही असर था जो मेरे लिए प्रेरणा बन गया मुझे चुनौती देता रहा मेरी प्यारी मां तेरी जली कटी मेरे लिए आशीर्वाद बन गई ..एक बार फिर से कह ना बड़ी आई कलेक्टर कहीं की!!!हंसती हुई गुड्डन की बात सुन
मेरी कलेक्टर बिटिया रानी कह मां ने दोनों हाथों से अपनी बेटी को कलेजे से लगा लिया था।

© kajal