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कागज
कागज , मेरा दिल उस कोरे कागज की तरह है ,जिसमें आप जो कुछ भी अंकित करना चाहो कर सकते है । यह एक सूचना हो सकती है ,किसी का प्रमाण किसी बिषय से सम्बन्धित जानकारी कुछ कुछ भी हो सकता है आपने सोचा मेने ऐसा क्यु कहा ,, कि मै एक कोरा कागज हू ,,
यही तो मेरा परिचय है मै एक कागज हू और कागज भी कैसा कोरा, खाली जिसके पटल पर अभी तक कुछ भी अंकित नही है,
मै उस पेङ से बनाया गया हू जिसने इस छणभंगुर जीवन कि कठिनाइयो को ,संघर्षमय जीवन को बहुत नजदीक से देखा और जीया है तब कही मै स्वमं को समझ पाया कि मै एक कागज हू
यह जीवन क्या है सबके लिए इसकी परिभाषाएं अलग अलग हो सकती है किन्तु यह सब परिभाषाओं से परे है इसको समझना इतना सरल भी नही कि इसको हर कोई समझ सके यह हमे अपने अन्तिम समय तक सिखाता ही रहता है इसे हम एक गुरू की तरह भी देख सकते है जो हमे हमेशा एक नयी सीख देता है और जीवन इतना कठिन भी नही है कि हम इससे हमेशा भयभीत हो सके , वास्तविकता तो यह है कि इन दो पहलू के बीच ही जीवन यह आसा व निराशा से भरा रहता है सुख -दुःख , आसा -निराशा, जन्म -मृत्यु, जैसे ही इसके अनेक पहलू है यह हमे कब कौन-सी सीख दे इसकी समस्त जानकारियां समय के सन्दूक मे कैद रहती है वास्तव में समय स्वमं सन्दूक है यह ऐसा विरोधाभाष है जिसे समय से परे जानना सम्भव नहीं है
इस समय में स्वमं को बताना चाहता हूँ कि यह जो दौर समय कि पटरियो पर दौङती ट्रेन कि भांति दौङ रहा है
इन सबके मे एकाएक अनेक विचारो से गुजर रहा हू। मै सोचता हू , मे एक कागज हू ,जो आज पूरे विश्व की सबसे कीमती चीज है। एक कागज ही तो है जिस पर कई अरबपतियों कि समस्त सम्पत्ति लिखी हुई है। वही किसी गरीब की जीवन भर कि कमाई भी , एक कागज पर दुनिया का समस्त ज्ञान
लाखो करोड़ पुस्तकें छपती है । वो कागज के पन्नो पर ही छपती है। चाहे वह अमीर हो या गरीब हो सभी एक कागज के नोट के लिए संघर्षरत रहते
जीवन हो या मृत्यु मे सुख हो अथवा दु:ख सब में जीवन का एक हिस्सा बन गया हू मै एक कागज जीवन का अभिन्न अंग बन चुका हू। मै

किन्तु मेरी प्रकृति मिट्टी जैसी है एवं यही सीख मे सबको देना चाहता हू । यह धरती हमारी माँ है और अन्त मे हमे इसी मे मिल जाना है अतः अपनी धरती मॉं से जुड़े रहे ,,
© Satyam Dubey