आत्मसम्मान...❣️
में इतनी हिम्मत क्यूं नही जुटा पाती कि जाने वालो को रोक कर कह सकूं.. "तुम्हारा जाना खलेगा , हो सके तो रुक जाओ ... मत जाओ"
या शायद मेरा प्रेम मुझे ये कह कर रोक देता है " कि पीछे से किसी को आवाज़ नही दी जाती , अशुभ होता है "खोखला कर दिया है तुमने मुझे... बिल्कुल किसी गले हुए नारियल की तरह ही..
मेरे अंदर सबकुछ है, एक मेरे आत्मसम्मान को छोड़कर..
तुमने हर बार किसी ना किसी तरह से चोट पहुंचाई है इसे..
कभी मुझसे झूठ बोलकर, या कभी वो सब सुनाकर जिसकी मैं कभी हक़दार नहीं थी...
तुमने ख़ुद के स्वाभिमान की हत्या तो ना जाने कब की कर ली थी, बस मेरा जो बाकी था, उसे तुमने मेरे अंदर...
या शायद मेरा प्रेम मुझे ये कह कर रोक देता है " कि पीछे से किसी को आवाज़ नही दी जाती , अशुभ होता है "खोखला कर दिया है तुमने मुझे... बिल्कुल किसी गले हुए नारियल की तरह ही..
मेरे अंदर सबकुछ है, एक मेरे आत्मसम्मान को छोड़कर..
तुमने हर बार किसी ना किसी तरह से चोट पहुंचाई है इसे..
कभी मुझसे झूठ बोलकर, या कभी वो सब सुनाकर जिसकी मैं कभी हक़दार नहीं थी...
तुमने ख़ुद के स्वाभिमान की हत्या तो ना जाने कब की कर ली थी, बस मेरा जो बाकी था, उसे तुमने मेरे अंदर...