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कलर वाला....।
काम के बोझ से थका चेहरा, बढती उम्र से झुरिया चेहरे पे साफ-साफ दिखाई दे रही थी | चेहरे पे वो मासुमियत और भोलापन शायद ज़िन्दगी के तजुर्बो से मिला था । अपने काम में मसघुल बड़े ही ध्यान से मेरे रूम की खिड़की पे रंग चढ़ा रहे थे। कुछ ऐसा था वो कलर वाला।

"भैया आपने ये रूम कितने में किराये पे लिया" उन्होने बड़े ही शांत भाव से मुझसे पूछा। मैं अपने बेड पे लेता हुआ गेम खेल रहा था, उनकी तरफ न देखते हुए ऊपरी मन से उनके सवाल का जवाब दे दिया। फिर उन्होंने कुछ पूछना शुरू किया तो मैंने लैपटॉप बंद किया और उनसे बाते करने लग गया। बातों ही बातों में मैंने उनके काम के बारे में जानना शुरू किया और बात उनके परिवार तक पहुँच गयी। थोड़ी देर उनके जवाब का इंतज़ार किया । कुछ न बोलते, मुझे नझर अन्दाज करते हुए वो रूम से बाहर चले गए । जैसे किसी ने पुराने ज़ख्मो की नब्ज़ पकड़ ली हो उनकी । शायद मैं कुछ गलत पूछ बेठा था उनसे पर पता नहीं क्यों मन ही मन में जिघ्यासा हो रही थी मेरे सवाल का जवाब जानने की। पर जब जवाब देने वाला ही वहा नहीं था तो थोड़ी देर के इंतज़ार बाद मैं अपने काम में वापस लग गया।


कुछ बाते ऐसी होती हैं जिन्हें याद करने से पुराने झखम हरे हो जाते हैं, ऐसा लगने...