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शीर्षक...
अक्सर किसी कविता या लेख को पढ़ते समय उसका "शीर्षक" नजरंदाज कर दिया जाता है। सारी प्रशंसा कविता ही लूट ले जाती है। जनाब कविता तो अंत में लिखी जाती है शीर्षक पहले सोचना पड़ता है! इसकी वजह ये होती है की कभी कभी हमारे कविता पाठक कविता को पढ़ना या न पढ़ना इसका चयन "आकर्षक शीर्षक " देख कर ही करते हैं।
इसीलिए किसी इंसान का आकलन भी सर्वप्रथम उसके ‘सर्वप्रथम व्यवहार’से ही किया जाता है।

सच कहूं तो शीर्षक से ही उस कविता को रंग रूप मिलता है और हम उसे ही भूल जाते हैं।
ये तो वही बात हुई जिससे तुम्हारी पहचान बनी हो उसे ही भूल जाना और खुद को सारा श्रेय देना, ठीक किसी इंसान की तरह।

सब ने कभी न कभी चीजों या लोगो को उपमा दी होती है की,
मैं कलम हूं तो तुम स्याही हो।
लेकिन किसी ने आज तक ये नहीं कहा की
में कविता हूं तो तुम उसकी शीर्षक हो!

शीर्षक का उतना ही महत्त्व है जितना की किताबों में लिखे ज्ञान का !

इस छोटे से संदेश में कोई त्रुटि हुई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगी।
© Vanshika Chaubey
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