...

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काल्पनिक युद्ध
प्रोजेक्टर की लाइट टूटते ही मेरा सब्र जवाब दे गया था... समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मेरे साथ ये क्या हो रहा है?
मन बहुत बेचैन था.. सारी मोटीवेशनल लाइंस आज मानो ब्लॉक सी हो गयी थीं. इतनी कमजोर नहीं हूँ.. कठिन से कठिन परिस्थितियों में ना सिर्फ खुद को सम्भाला बल्कि अपने साथ दूसरों को भी मोटीवेट करती रही हूँ..

आज खुद को नहीं सम्भाल पा रही थी.काफी देर इधर उधर टहलने के बाद अपनी खाला को फोन लगाया,
"सलाम खाला, कैसी है?"
"वालेकुम सलाम मेरी बेटी, कैसी हो, हम ठीक हैं मेरी चाँद..
खाला.... Ssss"
मैं कुछ देर के लिए खामोश हो गयी थी. मुझसे बात नहीं हो रही थी.मैं रोने लगी.
"नूर, क्या हुआ मेरी बच्ची.. क्यूँ परेशान हो?" खाला परेशान हो गयी थी.
"अरे नहीं खाला मैं ठीक हूँ. बस मैं कुछ दिनों से अपना काम सही नहीं कर पा रही हूँ आजकल इसीलिए परेशान थी."
"क्या हुआ"
"खाला पता नहीं क्या हो रहा है.. जब भी अपने प्रोजेक्ट पर काम करती हूँ हूँ तो सिर में दर्द शुरू हो जाता है या फिर नींद आने लगती है, या मेरा सामान खो जाता है याद ही नहीं आता है कि कहाँ रखा है.
मुझे लगा कि सब इत्तेफाक है फिर मैंने वापस काम शुरू किया तो इन्टरनेट कनेक्शन गायब हो गया. कभी लैपटॉप खराब हो जाता है, कभी फोन खराब हो जाता है आज प्रोजेक्टर की लाइट टूट गयी. जो काम फोन में जिस फाइल में सेव करती हूँ जरूरत पड़ने पर उस फाइल में शो नहीं होता है..तबियत भी साथ नहीं दे रही है. बस इसी वजह से परेशान हूँ. "मैंने खाला को बताया

" बेटा मैंने एक बार तुम्हारी लिखी हुई लाइंस पढ़ी थी जो मुझे अक्सर हिम्मत दे जाती है तुमने लिखा था..
जब किसी काम में या किसी मंज़िल को पाने में
मुश्किलें जरूरत से ज़्यादा बढ़ जाती हैं तो ये समझना चाहिए कि हम इस काम को करने में कामयाब हो चुके हैं बस उसका हमारे सामने आना बाकी है और हमारी  कामयाबी ऐसी शानदार होगी जो हमने भी तसव्वुर नहीं की होगी.ये मुश्किलें आपके कामयाब होने का सर्टिफिकेट होती हैं."
" थैंक्स खाला... मेरी लाइंस याद रखने के लिए. वाक़ई आपने बहुत आसानी से मेरी हिम्मत बढ़ा दी है. मैं इंशाअल्लाह वापस काम शुरू करती हूँ. "

" ठीक है बेटा, पहले थोड़ा आराम कर लेना फिर काम शुरू करना. जाओ अब थोड़ी देर के लिए सो जाओ. आज मेरा तुम्हारी तरफ आने का इरादा था "
" जी खाला,जरूर आइयेगा.. खुदाहाफ़िज़"मैंने फोन रख दिया था.

मैं थोड़ी देर सोने के लिए लेट चुकी थी और बस एक ख़्याल दिल में था कि मैं अपने मन के सुकून के लिए लिखती हूँ मुझे लिखना अच्छा लगता है.. पर आज के किस्से ने ये बता दिया था कि लिखते रहना चाहिये क्या पता आपकी ही लिखी हुई रचना कब दूसरों के माध्यम से कब आपको ही मोटीवेट कर जाये.
तुम बनाओ किसी तस्वीर में कोई रस्ता
मैं बनाता हूँ कहीं दूर से आता हुआ मैं

एक तस्वीर की तकमील के हम दो पहलू
रंग भरता हुआ तू रंग बनाता हुआ मैं

मुझ को ले जाए कहीं दूर बहाती हुई तू
तुझ को ले जाऊँ कहीं दूर उड़ाता हुआ मैं

एक कूज़े के तसव्वुर से जुड़े हम दोनों
नक़्श देता हुआ तू चाक घुमाता हुआ मैं

मुझ से बनता हुआ तू तुझ को बनाता हुआ मैं
गीत होता हुआ तू गीत सुनाता हुआ मैं
NOOR EY ISHAL


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