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बड़ी हवेली (डायरी - 9)
जैसे ही कमांडर खामोश हो गया मैं समझ गया कि सो गया अब कोई खतरा नहीं था रात भर कहानी सुनने के बाद मैं भी थक गया था इसलिए सो गया।
"जागो अरे भाई जागो, सुबह हो गई है, अरे भाई प्रोफेसर सुबह हो गई", मैंने आँखें खोला तो देखा डॉक्टर ज़ाकिर सामने खड़े आवाज़ दे रहे थे।
डॉक्टर ने फिर कहा "अरे आज सुबह 12:00 जानते हो क्या हुआ"।
मैंने पूछा "क्या हुआ था", अपनी आँखों को मलते हुए जैसा अक्सर ज़्यादातर लोग नींद से जाग कर करते हैं।
" कल उस अंग्रेज अधिकारी का धड़ टेंट से बाहर निकल कर गश्त लगा रहा था, उसे कुछ दिखाई नहीं देने की वजह
हताश सा कैंप के बाहर इधर-उधर टहल रहा था, कल रात पेहरे पर लगे एक आदमी ने मुझे उठाया फिर सारी बातें बताईं, टेंट से बाहर निकल कर देखा तो महाशय उन्ही पेहरेदारों के साथ बैठे हुए थे। वो सभी आराम से बातें कर रहे थे लेकिन उन्हें सुनाई नहीं देने से कोई दुर्घटना नहीं हुई। तुमने ठीक ही कहा था उस ज़िन्दा लाश की सारी ताकत उसके सिर में है", डॉक्टर ज़ाकिर ने मेरे कंधों पर को पकड़ कर मेरी ओर देखते हुए कहा।
मैं भी कुछ पलों के लिए मुस्कुराने लगा फिर कहा " चलो अच्छा है खतरा तो टला"।
" कल तुम्हारे साथ क्या हुआ, आखिर तुम उसके सबसे खतरनाक अंग के साथ थे ", डॉक्टर ज़ाकिर ने मेरी तरफ़ बड़ी उत्सुकता से देखते हुए पूछा।
"ज़्यादा कुछ तो नहीं हुआ बस मेरी नींद टूट गई देखा तो उस संदूक के चाभी लगाने वाली जगह से लाल रोशनी निकल रही थी अब संदूक में अलग से ताला तो लगता नहीं है। वो विशेष रूप से ख़ज़ाने या कीमती गहनों के लिए बना था और अंग्रेज अधिकारी का सिर अपनी बॉडी को आवाज़ लगा रहा था। वह काफी गुस्से में था लेकिन हम इंसानों की आवाज़ सुन पाने में असमर्थ था ", मैंने डॉक्टर ज़ाकिर से झूठ इसलिए कहा क्यूँकि मुझे उसका पता लगाना था जिसने कमांडर का सिर को संदूक खोलकर उसे कपड़े के थैले से बाहर निकाल कर संदूक में ऐसे ही रख दिया था। तभी तो रोशनी इतनी तेज चमक रही थी और उसकी आवाज़ बिना दबे सुनाई पड़ रही थी, अमूमन तौर पर जब किसी के ऊपर मोटे कपड़े के थैले , झोले या चादर से ढक देते हैं तो आवाज़ दबी हुई सुनाई पड़ती है ।
हालांकि डॉक्टर ज़ाकिर मेरे शक़ के दायरे से बाहर ही थे और मैं उन्हें अच्छे से जानता हूँ, वो मेरे अच्छे दोस्त भी हैं और अगर उन्हें धोखा देना ही होता तो मेरे हिस्से के हीरे पहले से ना देते, उन पर शक़ करना ही बेकार था।
"अच्छा अब फ्रेश होकर कुछ खा पी लो, हमलोग 11:00 बजे तक निकलेंगे तो पहाड़ी पार करके आज शाम 6:00 बजे तक गाँव पहुँच जाएँगे। आज रात वहीं रुक कर कल सुबह गाड़ियों में पहाड़ों से नीचे उतर कर हाई वे का रास्ता पकड़ लेंगे, मैंने गाँव में रुकने का इंतज़ाम पहले ही कर लिया था, उसी मुखिया के खाली पड़े बंगलों में रुकेंगे जिसमें चढ़ाई चढ़ने से पहले रुके थे", डॉक्टर ज़ाकिर ने मुझसे कहा और टेंट से बाहर चले गए।
मैंने उनके जाते ही उस संदूक को खोला तो देखा कि मेरा शक़ सही था कमांडर का सिर बिना कपड़े के थैले सहित ऐसे ही रखा हुआ था। फिर मैंने उस संदूक को बंद कर दिया और हीरे के बटुए को देखा तो सब कुछ ठीक था। उन हीरों को अपने कपड़ों वाले सूटकेस में रख ताला मार दिया। फ्रेश होने के लिए टेंट से बाहर निकल गया। टीम के सदस्य नाश्ता बना रहे थे। मैंने टेंट के बाहर बाल्टी में रखे पानी से हाथ मुँह धोया और टीम के एक सदस्य को आवाज़ लगाकर नाश्ता अंदर ही भेजने को कहा। नाश्ते के बाद सारा सामान घोड़ों पर लदवा दिया।
सब कुछ समेटने के बाद हमलोग सफ़र की शुरुआत करने के लिए तैयार थे। आज घोड़ों के साथ ऊँची और खतरनाक पहाड़ी चढ़ना था। हालाँकि पहाड़ी ज़्यादा ऊंची नहीं थी लेकिन पत्थरिली होने की वजह से घोड़ों के साथ काफी दिक्कत होती है, खासकर तब जब आपके साथ ज़्यादा वजनदार सामान हों और हमारे पास तो कई घोड़ों पर ख़ज़ाने के बक्से तथा झोले लदे हुए थे।
पहाड़ी आने से पहले ही डॉक्टर ज़ाकिर मेरे पास आकर बोले "प्रोफेसर तुम एक मंझे हुए घुड़सवार हो तो पहाड़ी पर अपने घोड़ों सहित पहले तुम्हें ही चढ़ना पड़ेगा फ़िर पहाड़ी पर रुक कर पीछे आ रहे घोड़ों को बड़ी सावधानी के साथ उन्हें चढ़ाई पर चढ़ाना पड़ेगा, एक बार चढ़ गए तो फिर नीचे उतरने में उतनी दिक्कत नहीं होगी"।
मैंने डॉक्टर से कहा " परेशान ना हों मैं उन्हें आराम से चढ़ा लूंगा पहाड़ी पर "।
पहाड़ी आते ही मैं अपने घोड़ों के साथ दल की अगुवाई करने के लिए आगे चलने लगा, मैंने बड़ी सावधानी से पहले अपने घोड़ों को चढ़ाया फिर रुक कर दल के सभी सदस्यों के घोड़ों को ऊपर चढ़ाया, मैं दल के सदस्यों को दिशा निर्देश देता जा रहा था कि कैसे उन्हें लगाम सही ढंग से थामना है, एक एक करके सभी घोड़ों को पहाड़ी चढ़ा कर फिर उन्हें बड़ी सावधानी से नीचे उतार लिया। घोड़े बड़े होशियार जानवर होते हैं अगर घुड़सवार अच्छा हो तो उनसे बहुत कुछ करवा सकता है। पहाड़ों पर घोड़े वज़न लाद कर भी बड़े अच्छे से चढ़ाई चढ़ लेते हैं बस उन्हें सही दिशा निर्देश देने वाला चाहिए।
गाँव पहुंचते ही हम सभी सीधा मुखिया के बंगलों में चले गए, मुखिया के पास गाँव में तीन आवास थे, एक में वो खुद रहता था और बाकी दोनों बंगलों में यात्रियों के रहने का इंतज़ाम कर रखा था। अब अक्सर तो यात्री आते नहीं थे लेकिन फिर भी इन्हीं बंगलों से उसकी अच्छी कमाई हो जाती थी। यात्रियों के खाने पीने का इंतज़ाम भी था जो मुखिया अपने परिवार की महिलाओं से बनवा लेता था। मज़े की बात यह थी कि मुखिया जी ने चार शादियां कर रखी थीं लेकिन बिना लड़े सारी महिलाएँ एक साथ रहती थीं। बंगले पर पहुंचते ही डॉक्टर ज़ाकिर और मैंने अपने कमरों में सावधानी से अपना अपना सामान रखवा दिया। काफ़ी थक चुके थे इसलिए आराम भी करना ज़रूरी था इसलिए थोड़ी देर कमर सीधी करने के लिए बिस्तर पर लेट गए।
कमांडर का सिर वाला संदूक मैंने टेबल पर रखवा दिया था और धड़ का ताबूत अलग कमरे में था जो डॉक्टर के ठीक सामने वाला कमरा था। दल के सदस्यों ने भी अपने कमरों में थोड़ा आराम कर लिया।
करीब नौ बजे मुखिया ने खाने का इंतज़ाम करवा दिया, बहुत दिनों के बाद घर का खाना नसीब हुआ था और काफ़ी स्वादिष्ट बना था। खाने के बाद हम सब अपने अपने कमरों में चले गए।
मैंने पेट भर कर खाया और कमरे में जाते ही बिस्तर पर लेट गया। थकान की वजह से मुझे नींद आ गई।
"कहाँ रह गया टुम..... आज का रात डॉक्टर का टमाम करना है..... इन द नेम ऑफ क्वीन अब तो आ जा नहीं तो सुबह हो जाएगा", कमांडर ने अपने धड़ को फिर से आवाज़ लगाई।
-Ivan Maximus

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