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" तोहफ़ा "
विपिन का अक्सर नैन्सी के घर आना जाना रहता है लेकिन उसके मन में कहीं न कहीं नैन्सी के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा था। वे एक दूसरे को बख़ूबी से जानते भी हैं किन्तु ये बात उसे पता भी है कि विपिन उसे बहुत प्यार करता है। वह उसे हर पल खुश और हसाता रहता है। सच में वह उसे अपनी जां निसार करता है।
जैसे जैसे समय का दायरा बढ़ा उसकी आंखों में आंखें डालकर देखने की बेताबी भी बेताब हो रही थी। वह उसे मन ही मन अपना चुका है लेकिन वह कहने का साहस नहीं जुटा पा रहा है अब। शायद वह जानता है कि वह कहीं फ़िर से उसका दिल न टूट जाए। यही कारण है कि वह अपनी बात को आगे बढ़ाने को डरता है। विपिन बिल्कुल अकेला रहता है और वह किसी तरह से थोड़ा काम और अन्य कोई उपाय कर के अपनी अध्ययन में लगा है।
अचानक एक दिन उसे ख़बर मिली कि नैन्सी की तबीयत बहुत ख़राब है। उसकी अधीरता और घबराहट होने लगी। वह अस्पताल पहुंचा और देखता है कि वह इस समय बेहोशी की हालत में है। डॉक्टर ने बताया कि उसका लीवर डैमेज हो गया है। इसकी जान तभी बच सकती है यदि आप के पास तीस लाख रुपए हो या फिर कोई अपना लीवर देने को तैयार हो। ,"वरना आप की मर्ज़ी" ,डॉक्टर साहब ने कहा।
मां बाप की हालत देख मेरा मन डरने लगा और कोई भी अपना लीवर देने को तैयार नहीं है। वह सीधे डॉक्टर साहब के पास गया और वह बोला, " मै अपना लीवर देने को तैयार हूं और आप कृपया जल्दी से इलाज़ कीजिए।" उसकी आंखों में ख़ुशी के आंसू निकल पड़े।
उसने डॉक्टर से कहा," ठीक तो हो जाएगी ना डॉक्टर साहब।" बिल्कुल ठीक हो जायगी जब आप जैसा लड़का हो और अपना लीवर देने को तैयार है। यह तो एक छोटा सा तोहफ़ा है उसके लिए मेरी तरफ़ से।
अगले दिन नैन्सी का सफलता पूर्वक आपरेशन हो गया और उसे जीवन दान मिला।
अब विपिन भी अपनी अंतिम लीला समाप्त कर चुका था।

'Gautam Hritu'



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