कहीं दूर पहाड़ों के बीच…
कहीं दूर पहाड़ों के बीच..
इन दिनों पहाड़ों में काम करने वाले हर गाइड की यही कहानी है…..जो आपके लिए असाधारण रोमांच है वो हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी है।
कभी इस शहर से आगे निकलते हैं तो पता लगता है कि पिछले शहर में बादल फट गया है तो कभी एक वैली से दूसरी में प्रवेश करते ही पता लगता है कि आपके निकलने के कुछ समय बाद ही वहाँ भारी लेंडस्लाइड हुआ है।
मानो सफ़र ना हुआ कोई तमाशा हो गया …फटते हुए बादलों और कटते हुए रास्तों के बीच ही ये सफ़र चल रहा है…यही ज़िंदगी भी है….हर पल रंग बदलती है और हमें कुछ नया सीखने को मजबूर करती है और शायद मज़बूत भी।
बीते महीने से हिमाचल हूँ …यहाँ रोज़ाना बादलों का फटना आम सा हो गया है और जिस रास्ते से गुजरते हैं या गुज़रना होता है उसका टूटकर बिखर जाना भी आम सा हो चला है।
बीते दिनों इसी आपदा के चलते पिछला टूअर डायवर्ट करना पड़ा था…और अब जब ये अच्छा चल पड़ा है तो बादलों ने कमर कस ली है रास्तों को नेस्तनाबूद कर हमें कहीं ना कहीं उलझाने की ….
सम्भव है कि शायद देवराज इन्द्र को ज़रा सा भी आभास ना हो की मैं भगवान श्रीकृष्ण का वंशज हूँ जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी चिट्टी उँगली पर उठा लिया था देवराज इन्द्र का मानमर्दन करने के लिए…..ठीक है जानता हूँ हिमालय का वजन उठाना मेरी औक़ात से बाहर है पर मैं अपने हौसलों का वजन तो उठा ही सकता हूँ।
वैसे भी क्षत्रिय का जीवन संघर्ष ही है। मिलते हैं माहौल सुधरने पर, तब तक के स्वस्थ रहिए मस्त रहिए ।
कहीं दूर पहाड़ों के बीच
✍️ विक्की सिंह
© theglassmates_quote
इन दिनों पहाड़ों में काम करने वाले हर गाइड की यही कहानी है…..जो आपके लिए असाधारण रोमांच है वो हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी है।
कभी इस शहर से आगे निकलते हैं तो पता लगता है कि पिछले शहर में बादल फट गया है तो कभी एक वैली से दूसरी में प्रवेश करते ही पता लगता है कि आपके निकलने के कुछ समय बाद ही वहाँ भारी लेंडस्लाइड हुआ है।
मानो सफ़र ना हुआ कोई तमाशा हो गया …फटते हुए बादलों और कटते हुए रास्तों के बीच ही ये सफ़र चल रहा है…यही ज़िंदगी भी है….हर पल रंग बदलती है और हमें कुछ नया सीखने को मजबूर करती है और शायद मज़बूत भी।
बीते महीने से हिमाचल हूँ …यहाँ रोज़ाना बादलों का फटना आम सा हो गया है और जिस रास्ते से गुजरते हैं या गुज़रना होता है उसका टूटकर बिखर जाना भी आम सा हो चला है।
बीते दिनों इसी आपदा के चलते पिछला टूअर डायवर्ट करना पड़ा था…और अब जब ये अच्छा चल पड़ा है तो बादलों ने कमर कस ली है रास्तों को नेस्तनाबूद कर हमें कहीं ना कहीं उलझाने की ….
सम्भव है कि शायद देवराज इन्द्र को ज़रा सा भी आभास ना हो की मैं भगवान श्रीकृष्ण का वंशज हूँ जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी चिट्टी उँगली पर उठा लिया था देवराज इन्द्र का मानमर्दन करने के लिए…..ठीक है जानता हूँ हिमालय का वजन उठाना मेरी औक़ात से बाहर है पर मैं अपने हौसलों का वजन तो उठा ही सकता हूँ।
वैसे भी क्षत्रिय का जीवन संघर्ष ही है। मिलते हैं माहौल सुधरने पर, तब तक के स्वस्थ रहिए मस्त रहिए ।
कहीं दूर पहाड़ों के बीच
✍️ विक्की सिंह
© theglassmates_quote
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