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एक रिश्ता (भाग 4/ अंतिम भाग)
9 बज गए थे, अर्चना नहीं आईं थीं, अमित भी गाड़ी में जाकर बैठ गया और गाड़ी चलने लगी।सारे रास्ते भर वो फिर ख़ुदको कोस्ता रहा, की इस बार भी उसने अर्चना को खो दिया। उसे अभी भी नहीं पता था कि अर्चना अभी भी उसकी ही थी या किसी और कि हो चुकी थी। ना ही उसके पास अर्चना का फोन नंबर था।

घर पहुंचा तो उसका घर सजा हुआ था जैसे कोई त्योहार हो आज। उसने दरवाजा खटखटाया तो पिताजी ने दरवाजा खोला और मुस्कुराकर उसको अन्दर बुलाया, माँ ने भी प्यार से बात करी।अर्चना के जाने के बाद आज पहली बार उससे किसीने प्रेम से बात करी थी।नहा धोकर वो खाना खाने आया तो सारा खाना उसकी पसंद का था। उसके माता पिता उसके साथ खाना खाने के लिए बैठे। किचन से चूड़ियों और पायल की आवाज आ रही थी।उसने किचन कि ओर देखा तो उधर से अर्चना आ रही थी, उसे उसकी नजरो पर विश्वास ही नहीं हुआ। गुलाबी साड़ी, मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र।
जब उसे यकीन हुआ की ये सपना नहीं है तो उसे बहुत खुशी हुई, इतने महीनों में भी वो उसकी ही थी।

"कल शाम को ही बहू यहांँ आ गई थी, हमेशा के लिए।" माँ बोली।
"इस बार अगर तेरे कारण इसको कोई तकलीफ़ हुई तो तू घर से जाएगा ये नहीं।" पिताजी ऊंची आवाज में बोले।
" जी पिताजी " अमित बोला। सबने साथ में खाना खाया। फिर सब सोने चले गए। अमित सोफे पर ही सोया और अर्चना कमरे में।
अगले दिन एक अच्छा सा मूहरत देखकर उनकी दुबारा शादी करा दी गई।
इस बार अमित ने खुद से ही वादा किया था कि ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे अर्चना को तकलीफ़ हो, और उनके रिश्ते पर आंँच आए।







होने को इस कहानी का अंत ऐसा भी हो सकता था कि अर्चना उसके पास वापस नहीं आती। पर क्युकी ये हम पर निर्भर करता है कि हम किसकी , कौन कौन सी, और कब तक गलतियां माफ कर सकते है।
इसलिए मैने इसका अंत सकारात्मक (positive) करना अच्छा समझा।

आप अर्चना की जगह होते तो क्या करते.... कॉमेंट करके जरूर बताएं और उसके लिए पहले पूरी कहानी भी पढ़ें।
© pooja gaur