...

8 views

अपेक्षा
अपेक्षाएं अक्सर दुख का कारण बन जाती है। यदि अपेक्षा के भाव के स्थान पर मनुष्य अपने अंदर कृतज्ञता का भाव ले आए तो जीवन में आने वाले विभिन्न व्यक्तियों एवं परिस्थितियों के प्रति उसका दृष्टिकोण बदल जाएगा और उनसे अपेक्षाओं के कारण होने वाले दुख कम हो जाएंगे। कृतज्ञता का भाव सदैव आपको सकारात्मकता की ओर ही ले जाएगा। कृतज्ञता भावनाओं को पूर्ण विराम देती है जब की अपेक्षा कभी खत्म नहीं होती। कृतज्ञता का भाव कर्मयोगी बनाता है अपेक्षा नहीं।आज के परिपेक्ष में हम सबसे ज्यादा अपेक्षा अपने बच्चों से करते हैं।जो दुख का कारण बनता है, यदि हम इस भाव को इस तरह लें कि हम अपने बच्चों द्वारा दिए गए हजारों खुशियों के पल के लिए उनके कृतज्ञ हैं, वह हमारे जीवन में आए ,उन्होंने हमें माता-पिता होने का सौभाग्य प्रदान किया इसके लिए हम ईश्वर के कृतज्ञ हैं। जिस तरह पक्षी अपने बच्चों से आत्मनिर्भर होने के अलावा कोई अपेक्षा नहीं करते वैसे ही हम अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के अलावा कोई अपेक्षा ना रखें तो जीवन में अपेक्षाएं पूर्ण न होने के कारण आने वाली कुंठा कभी नहीं आएगी। इसी तरह यदि हम अपने माता-पिता के प्रति सदैव कृतज्ञता का भाव रखें कि उन्होंने हमें आत्मनिर्भर बनाया वे स्वयं स्वस्थ हैं वे स्वयं आत्मनिर्भर हैं इसके लिए हम उनके कृतज्ञ हैं तो उनसे किसी अन्य वस्तु संपत्ति आदि की अपेक्षाएं करना तुच्छ महसूस होगा।