बहस
इस बात पर बहस छिड़ गयी मन में
कि किस बात पर अब रोया जाए
एक से बड़े एक दर्द हैं यहाँ पर
आखिर कितनों को अब ढ़ोया जाए
तो मन में ही एक सभा सजी
टेबल लगा और कुर्सियाँ लगी
फिर कहीं से कुछ ख्याल आये
और साथ मे अपने तर्क भी लाये
कोई बोला
ये नए दर्द जो इधर आयें हैं
यहाँ उछल कूद बड़ा मचाये हैं
कोई ना पहचानता है इनको
यहाँ पर सब लोग इनसे घबराए है
कोई बोला
पुराने दर्दों को यूँ हल्के में लेना
मुझे नहीं लगता ठीक है ये
उनके आँसू किसी और को देना
मुझे नहीं लगता ठीक है ये
कोई बोला
पुराने दर्दों को छेड़ना ठीक नहीं
वो शांत अभी कहीं पर बैठे हैं
ग़र गुम है तो उन्हें गुम ही रहने दो
सब जानते हैं कि वो कैसे हैं
कोई बोला
जब ये नए दर्द निकलेंगे
आँखों से आँसू बनकर
अगर जरा भी भनक लगी
तो पुराने आ जाएंगे तनकर
फिर कोई बोला
हाँ रोक तब हम उन्हें भी न पायेंगे
और आँसू बहते के बहते रह जायेगें
और तब हमने सोचा
जब डर है फसल के चर जाने का
तो बबूल ही क्यों न बोया जाए
बंजर रहने देते हैं आज नयन अपने
अब चलो चैन से सोया जाए
© प्रियांशु सिंह
कि किस बात पर अब रोया जाए
एक से बड़े एक दर्द हैं यहाँ पर
आखिर कितनों को अब ढ़ोया जाए
तो मन में ही एक सभा सजी
टेबल लगा और कुर्सियाँ लगी
फिर कहीं से कुछ ख्याल आये
और साथ मे अपने तर्क भी लाये
कोई बोला
ये नए दर्द जो इधर आयें हैं
यहाँ उछल कूद बड़ा मचाये हैं
कोई ना पहचानता है इनको
यहाँ पर सब लोग इनसे घबराए है
कोई बोला
पुराने दर्दों को यूँ हल्के में लेना
मुझे नहीं लगता ठीक है ये
उनके आँसू किसी और को देना
मुझे नहीं लगता ठीक है ये
कोई बोला
पुराने दर्दों को छेड़ना ठीक नहीं
वो शांत अभी कहीं पर बैठे हैं
ग़र गुम है तो उन्हें गुम ही रहने दो
सब जानते हैं कि वो कैसे हैं
कोई बोला
जब ये नए दर्द निकलेंगे
आँखों से आँसू बनकर
अगर जरा भी भनक लगी
तो पुराने आ जाएंगे तनकर
फिर कोई बोला
हाँ रोक तब हम उन्हें भी न पायेंगे
और आँसू बहते के बहते रह जायेगें
और तब हमने सोचा
जब डर है फसल के चर जाने का
तो बबूल ही क्यों न बोया जाए
बंजर रहने देते हैं आज नयन अपने
अब चलो चैन से सोया जाए
© प्रियांशु सिंह
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