"तुम नज़र में हो.....”
*ईश्वर*
एक दिन सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी । दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद- काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा हैं ।
मैंने कहा, *"जी कहिए.."*
तो उसने कहा,
अच्छा जी, आप तो रोज़ हमारी ही गुहार लगाते थे,
मैंने कहा
*"माफ कीजिये, भाई साहब ! मैंने पहचाना नहीं, आपको..."*
तो वह कहने लगे,
*"भाई साहब, मैं वह हूँ, जिसने तुम्हें साहेब बनाया हैं... अरे ईश्वर हूँ.., ईश्वर.. तुम हमेशा कहते थे न कि नज़र में बसे हो पर नज़र नहीं आते.. लो आ गया..! अब आज पूरे दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।"*
मैंने चिढ़ते हुए कहा,
*"ये क्या मज़ाक हैं?"*
*"अरे मज़ाक नहीं हैं, सच हैं। सिर्फ़ तुम्हें ही नज़र आऊंँगा। तुम्हारे सिवा कोई देख- सुन नहीं पायेगा, मुझे।"*
कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी..
: "अकेला ख़ड़ा- खड़ा क्या कर रहा हैं यहाँ, चाय तैयार हैं , चल आजा अंदर.."
अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था.. मैं जाकर...
एक दिन सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी । दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद- काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा हैं ।
मैंने कहा, *"जी कहिए.."*
तो उसने कहा,
अच्छा जी, आप तो रोज़ हमारी ही गुहार लगाते थे,
मैंने कहा
*"माफ कीजिये, भाई साहब ! मैंने पहचाना नहीं, आपको..."*
तो वह कहने लगे,
*"भाई साहब, मैं वह हूँ, जिसने तुम्हें साहेब बनाया हैं... अरे ईश्वर हूँ.., ईश्वर.. तुम हमेशा कहते थे न कि नज़र में बसे हो पर नज़र नहीं आते.. लो आ गया..! अब आज पूरे दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।"*
मैंने चिढ़ते हुए कहा,
*"ये क्या मज़ाक हैं?"*
*"अरे मज़ाक नहीं हैं, सच हैं। सिर्फ़ तुम्हें ही नज़र आऊंँगा। तुम्हारे सिवा कोई देख- सुन नहीं पायेगा, मुझे।"*
कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी..
: "अकेला ख़ड़ा- खड़ा क्या कर रहा हैं यहाँ, चाय तैयार हैं , चल आजा अंदर.."
अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था.. मैं जाकर...