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प्रेम :-भाग-१ आकर्षण का मायाजाल
#Nikhilthakur
......‼️ प्रेम‼️ ...:- भाग-१
‼️आकर्षण‌ मायाजाल ‼️
.सामाजिक‌ भाषा में कहूं तो प्यार....और अति सामाजिक भाषा में कहूं तो लडकी या लडके को पटाना ....कितना बेहूदा शब्द आजकल प्रयोग किया जा रहा है प्रेम के विषय में ...इतना घटिया शब्द ..सही‌ रूप से सोचे तो अपने आप में एक गाली सा शब्द लगता है मुझे ये...
भले ही इन आधुनिक सामाजिक लडको व लडकियों को मेरी बात से हृदय आघात पहुंचे पर वास्तविकता तो यही है ...
‌‌जब भी प्रेम के इजहार में यह पटाने का शब्द प्रयुक्त होता है त उस‌ समय मन में केवल कुछ बेहुदे विचार ही मन में विचरण करने लगते है...जो कि प्यार‌‌ की‌ सही‌ परिभाषा को ...वास्तविक प्रेम की भावनाओं को दबोच डालती‌ है और मन में केवल और केवल वासना नामक चिंगारी के‌ विचार ही प्रयुक्त होते है।
‌‌‌‌‌ और वासना की इस चिंगारी‌ को ...इस आकर्षण को तमाम लडकी व लडके प्रेम समझ बैठते है।
‌‌‌‌ कई बार जब मैं अपने आस पास के लडके व लडकियों को‌ देखता हूं तो मैं विचार करके हैरान हो जाता हूं...उनकी प्रेम भरी‌ रसीली बातों को‌ सुनकर ही दंग रह जाता हूं...
‌कि आखिर प्यार ऐसा ही होता है ...आज के समय में तो प्रेम की परिभाषा रंगरूप से ही होती है...आकर्षक व सुन्दर शरीर ...तराशा हुआ बदन ......जिसे देखकर हर कोई आकर्षण रूपी बाण के पाश में बंध जाता‌ है और हर लडका उसी स्त्री‌ को पाने की ईच्छा रखता है...चाहा रखता है...उसके‌ ही स्वप्न लेता है ...परंतु वास्तव में तो यह जाल है।
और यही‌ स्थिति लडकियों के मन व दिल की है....प्रेम को समझना अर्थात पागल हो जाना ...स्वयं को मिटा देना ...स्वयं का अस्तित्व को खत्म कर देना।
यहां स्वयं को‌ मिटा देने का अर्थ यह नहीं है कि स्वयं को‌ मार देना है या‌ फांसी लगा लेना है आदि से‌ हीं ...मिटा‌ देने का अर्थ है स्वयं को‌ खो देना...स्वयं में डूब जाना ....
‌‌‌‌ अगर मैं आपसे प्रश्न पुछूं कि क्या‌ आपने कभी स्वयं से‌ प्रेम किया है ...या‌ स्वयं‌ से कभी प्यार करके‌ देखा है।
क्रमश:निखिल ठाकुर
© Nikhilthakur