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साठ बरस में इश्क लड़ाएं ........
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दोस्तों अभी कुछ दिन पहले होली में आप सब ने इस गाने पे खूब डांस और मौज मस्ती की होगी (साठ बरस में इश्क लड़ाए देखे नहीं अपनी उमरिया......) कुछ लोगों के लिए तो यह हंसी मजाक का एक विषय मात्र रहा होगा पर क्या वास्तव में किसी बुजुर्ग couple को प्रेम करने का कोई अधिकार नहीं होता ?
क्या feelings की भी एक उम्र तय होती है ?

क्या प्रेम को सिर्फ शारीरिक आकर्षण का पर्याय मान लेना उचित है?
क्या उसमें आत्मीयता और भावनाओं का कोई मोल नहीं होता ?
या फिर वासना को ही प्रेम का नाम दे दिया गया है ?

अक्सर हम सब अपने घर में या आसपास जब किसी बुर्जुग couple को प्रेमपूर्वक हंसते मुस्कुराते या एक दूसरे की care करते देखते हैं तो हम एकाएक यह कह बैठते हैं कि ......

"देखो बुढ़ऊ इश्क लड़ा रहे हैं "

हमारे इन्ही शब्दों से आहत होकर संकोच वस वो अलग अलग रहने को मजबूर हो जाते हैं
अमूमन जिसके घर में बहू आ जाती है तो बेचारे पिता जी घर के बाहर वाले कमरे में और माता जी किसी अन्य कमरे में या फिर बरामदे में ही शिफ्ट हो जाती हैं

पर क्या यह उचित है ?? जिन्हें ऊपरवाले ने एक साथ रहने के लिए चुना , और जिनकी वजह से ही आज हमारा अस्तित्व है हम जाने अनजाने में उन्हें ही अलग कर देते हैं

एक मिनट के लिए इस परिस्थिति को महसूस कीजिए और खुद को उनकी जगह पर रख के देखिए कि वे कितनी पीढ़ा से गुजरते होंगे ?

खैर....आप सब को कहीं ये न लगे कि मैं ज्ञान बांट रही हूं ।
मेरा ऐसा साहस भी नहीं है मैं अनुभव में आप सब से बहुत छोटी हूं

मैने जो महसूस किया उसे आप सब के दिलो तक पहुंचाने की कोशिश की है बस ..🙏🙏




© Rekha pal