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अंजाना सफर
एक दफा घर से निकली तो पर घर सायद फिर कभी लौटी ही नहीं कुछ इस कदर मेरे साथ हुआ आये जानते है-
शाम का वक़्त था जहाँ नदी के किनारे एक सुनेहली किरणों का समूह जैसे उसे एक नया आकर दे रहा हो... मद्धम सी हवा, एक मिठी सी धुन मेरे कानों मे जा रही थी मालूम नही क्योंकि उस वक़्त मेरे पास मोबाइल नहीं था में आगे बढ़ते हुए उस धुन में खोये जा रही थी, जब थोड़ा रुकी में साँसे जैसे हाई हो चुकी थी, थोड़ा रिलेक्स कर रही ही रही इतने में जिस श्क़्स के...