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विराट पुरुष 'ब्रह्म दर्शन'
वेद को किसने प्रकट किया??
ये खुद में एक प्रश्न है किंतु जब तक कुछ तथ्य सामने ना आये हम वेद को ब्रह्म मानते हैं।

जब विद्वान मनुष्य ने वेद से प्रश्न किया कि ब्रह्म का स्वरूप क्या है?? ब्रह्म कहाँ रहते हैं?? ब्रह्म की जाति क्या है?? क्या ब्रह्म का दर्शन किया जा सकता है??

उसके जवाब में वेद का उत्तर है ब्रह्म के हजार हाथ है, हजार आँख हैं, हजार मुख है, हजार पैर है...
इस से विद्वान मनुष्य ने ये अर्थ लगाया ब्रह्म की कोई सीमा नही है वो अनादि, अनंत है।

वेद ने कहा ब्रह्म नाभि से 10 अंगुल उपर मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं।

वेद ने ब्रह्म के जाति के बारे में कहा कि मुख से ब्रह्म ब्रह्मण है, हाथ से क्षत्रिय, उदर और जांघ से वैश्य एवं पैर से शुद्र।

ब्रह्म का दर्शन करने की 2 विधि है एक 'भक्ति' और दूसरा 'योग' ।

योगी और भक्त ही ब्रह्म का दर्शन कर पाते हैं।

योग कठिन है तो भक्ति कुछ ज्यादा ही कठिन।

वेद ने सांख्य योग व अष्टांग योग के बारे में जानकारी दी।

अब हम अपनी कहानी की और चलते हैं।




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