...

12 views

"हफ्ते भऱ का दोस्त" Part-1


"हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा

बस बस साहब... पेट में दर्द होने लगा मेरे तो...

मुझे तो मज़ा आ गया आपसे बात करके, ज़िन्दगी का एकदम नया पहलु समझाया आपने...

हम जब बच्चे थे तो हमारे भी माँ बाप चाहते थे की हम भी डॉक्टर या इंजीनियर बने... और बन गए गाइड... अब अपना काम, अपने लिए और अपनी मर्ज़ी से ...

चलिए साहब, आप भी आराम कीजिये, कल सुबह निकलना भी होगा हमे 7:30 तक ... 11 बजे की ट्रेन है आपकी और नाश्ता वगैरह पैकिंग करवा के ले चलेंगे , ताकि ट्रेन में आप खा सके आराम से... ऐसे भगा दौड़ी में आप खा नहीं पाएंगे सही से... "

"और सुबह....???" साहिब बोले

"मैंने ब्रेड और मक्खन मंगवा लिया है, सुबह चाय के साथ लीजियेगा, और फिर हैवी नाश्ता ट्रेन में 11 बजे के बाद... "

और फिर वो लोग चले गए... मेरे इस हफ्ते का परिवार... मेरे भाई - भाभी... भतीजे - भतीजी...

"अरेह क्या हाल रेहमान चचा... लाओ १ हफ्ते से चाय नहीं पी आपकी… ऐसा लग रहा है जैसे दुनिया अधूरी - अधूरी सी दिख रही है..."

रेहमान चाचा - "हाँ भई, बातों का ही तो खाते हो.. लो तुम्हारी चाय और तुम्हारे कल आने वाले टूरिस्ट का नंबर..."

पर्ची देखते हुए मैं अवाक सा... "चाचा, आप भी... धंदा डाल लिए क्या..."

रेहमान चाचा - "कल एक टूरिस्ट की ट्रेन छूट गयी थी... और गाइड था अपना संतू... एक बार पैसे मिल गए उसके पूरे, फिर वो न मुंह लगाता है किसी को और ना पकड़ में आता है... एक दिन के होटल के 2500 सौ मांग रहा था... और बोल रहा था की इस से कम नहीं हो पायेगा... बच्चा भी छोटा था उनका... एक दम गोदी का... मुझे तरस आ गया... तो मैंने कह दिया, आप लोग अंदर आ जाओ... बच्चे को दूध गरम करके दे दिया और दोनों को चाय बिस्कुट..."

"हम्म्म... फिर..."

"फिर क्या... बोले ट्रेन छूट गयी है... और सीजन में कन्फर्म टिकट मिलना मुश्किल है... कहीं दूर के थे... शायद मुंबई के... फिर मैंने ही शाम को गाड़ी में बिठवा दिया... अपने स्टेशन मास्टर साहब से कहकर... निकलते वक़्त 500 रूपए दिये और एक पर्ची... कहा इसमें नंबर है वो मेरी साली है... किसी अच्छे गाइड से मिलवा दीजियेगा... ले फिर... पकड़ इसे..."

"अच्छा गाइड... हा हा हा हा हा हा हा हा.... मुझे क्यों दे रहे हो फिर... "

"क्यूंकि, तू उधार नहीं खाता मेरे यहाँ... और जब भी यहाँ होता है... यहीं खाता है... हा हा हा हा हा हा हा हा

नंबर मिला दिया मैंने... एक महिला की आवाज़ आयी... "हेलो"...

हाँ जी मैडम... गाइड बोल रहा हूँ... दीपक... आपके रिश्तेदार से नंबर मिला मुझे..."

"हाँ... हाँ... मेरे जीजा जी हैं वो... मैं कल सुबह आ रही हूँ... 9 बजे की ट्रैन है... मैं डिटेल्स मैसेज कर रही हूँ..."

"कितने लोग हैं मैडम... और गाड़ी कौन सी करनी है..."

"मैं अकेली हूँ... कोई छोटी गाड़ी चलेगी... सामान भी कम ही है..."

"अच्छा"... मैं बहुत सारे सवालों को मन में रोक के बोला... "आप आ जाइये पहले..."

अगले दिन प्लेटफार्म न. ३ पर आयी गाड़ी में कोच बी 1 सीट 33 पे मैं पहुंचा तो वो बस अपने स्पोर्ट्स शूज की लैस बाँध रही थी... एक तरफ के बालों से उसका चेहरा ढाका हुआ था और मैं उसके रेशमी बालों को ही देखता रहा और 2 पल बाद जब वो उठी तो उसने मेरी तरफ देखकर एक लम्बी से सांस ली...

"दीपक…???"

"जी"

"चलें"

"दीजिये बैग मुझे..." और बैग दे दिया और तभी ए.सी. कोच के बहार जो प्लेटफार्म पर उतरने का दरवाज़ा होता है, उसके कदम रुके, और उसने ज़ोर से मेरी बाँह पकड़ ली... और एक धड़धड़ाता हुआ रेलवे का शंटिंग इंजन वहां से अकेला निकल गया...

“क्या हुआ मैडम"

"मुझे भीड़ और तेज़ आवाज़ डरा देती हैं"

"और आप अकेले निकल आयीं हैं घूमने...हैं... हा हा हा हा हा... चलिए आइये, यहाँ सिर्फ स्टेशन पर ही शोर होता है... यहाँ से निकले तो शान्ति ही शान्ति... एक दम सुनसान...

होटल आते ही उसने कहा... "क्या प्रोग्राम होगा और कितने दिन में घुमा दोगे मुझे पूरा..."

"कैसी जगह पसंद है आपको…???"

"देखो, मुंबई से आयी हूँ... तो शोर शराबा... धूल मिटटी... डिस्को वगैरह... नहीं जाना... एक दम अलग ज़िन्दगी जीनी है मुझे इन 4 दिनों में...

"पहाड़ आयी हैं पहले आप कभी...??? "

"नहीं... मेरा पहली बार है..."

"आइये नीचे चलते हैं... आपको चाय पिलवाते हैं..."

"यहीं मंगवा लो न...!!!"

"नहीं मेमसाब... अब आप मुझे भूल न जाएं... इसीलिए मैं आपको अपने पहाड़ो से मिलवाऊंगा... जिस से वो आपका वेलकम करें, और आपसे प्यार भी... वर्ना पहाड़ बड़े शांत और संजीदा होते हैं... किसी को अपनी अन्दरूनी ख़ूबसूरती से जल्दी नहीं मिलवाते..."

"साउंड्स गुड... चलो फिर..."

"रेहमान चाचा... २ चाय... ये वही हैं, जिनका नंबर आपने दिया था..."

"अच्छा अच्छा... आओ बिटिया... बैठो... कुछ खाओगी भी..."

"आप...??? उसने पूछा...

"इन्होंने ने ही तो टिकट और सीट करवाई थी... आपके जीजा जी... "

"अच्छा... थैंक्यू जी..." और तब वो पहली बार मुस्कुरायी...

और मैंने उसको देखकर कह दिया... "आपकी आंखें और मुस्कराहट आपस में एक दूसरे से जलते हैं...???"

"क्या मतलब...???"

"मतलब आँखें कुछ और कह रहीं हैं और मुस्कराहट में उसका कोई योगदान नहीं दिख रहा..."

वो थोड़ी संभल गयी और उसने चाय का प्याला उठाकर एक बार में बची हुई चाय ख़त्म कर दी... और झटके से पर्स उठाया और टेबल से खड़ी हो गयी... "कितना हुआ चाचा जी…???"

"३० रूपए बिटिया रानी..."

" ये लीजिये..." और मेरी तरफ देखकर बोली... "चलें" बड़ा बुरा सा चलें था ये वाला...

"टैक्सी करेंगी कल...???"

"भीड़ मुझे पसंद नहीं... तुम्हारे पास कोई गाड़ी हो तो ले चलो... मैं टैक्सी का जो हिसाब बनता है उस हिसाब से पैसे दे दूंगी..."

डील अच्छी थी... मैंने कह दिया... "ओके मेमसाब..."

"मेरा नाम रोशिनी है और मुझे मेरे नाम से ही बुलाओ तुम... मुझे बार बार मेमसाब कहते हो बड़ा अजीब सा लगता है... दोस्त बन जाओ मेरे और अपने पहाड़ो से पहचान करा दो मेरी... मुझे इन चार दिन की यादों से अपना पूरा साल चलाना है..."

"ओके रोशिनी..." और ये बोल के अपनी हिम्मत पे मुस्कुरा दिया जैसे ना जाने कौन सा पहाड़ हिला दिया मैंने... हा हा हा। ..

"आज मुझे बताओ की क्या प्लान है कल से 4 दिन का... और फिर मुझे अच्छा सा लंच करवा देना..."

आइये आपको पास में एक झील है... वहां ले चलता हूँ... वही बेंच पे बैठ के आपको कल का प्रोग्राम सुना दूंगा... वहां पास ही एक रेस्टोरेंट भी है... वहां आप खाना खा लीजियेगा... और फिर वहां से एक वॉक ... आपके होटल आ जायेंगे..."

वो फिर बोली... "साउंड्स गुड... चलो फिर..." लगता है यही बार बार बोलती है...

बेंच पे जब उसको बिठाया तो मैं सामने रेलिंग पर बैठ गया... शायद बराबर में बैठता तो उसको अच्छा नहीं लगता और मेरा भी स्वार्थ था... मैं उसे देख कैसे पाता..."

"बताओ अब"

"कल सुबह आपको मैं ऊपर स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन करवाने ले चलूँगा... सच्चे मन से वहां सब कुछ मिलता है... ऐसी मान्यता है...
उसके बाद वहीँ पानी का एक झरना है... जिसके पास बेंच पे बैठकर आप उसकी बौछार महसूस कर सकती हैं... इतनी महीन होती है उसकी बौछार की आप सिर्फ उसकी बौछार को महसूस कर सकेंगी... भीगेंगी बिलकुल नहीं...

वहां आप कुछ हल्का खाना वगैरह खा लीजियेगा... उसके बाद वहां से १ घंटे की दूरी पे सेब का बाग़ है... हरे हरे सेब और वो भी मीठे मीठे... उसको कटवा कर हल्का सा नमक और काली मिर्च... खाइयेगा आप... तारीफ कीजियेगा...

वापसी में 5 – 5:30 तक एक दम कड़क चाय पिलवाई जाएगी आपको... और फिर वहां से 2 घंटे में होटल... 8 बजे आप अपने कमरे में..."

"वाह... उसके अगले दिन..."

"पहले ये तो घूम लो..."

" नहीं... अभी बताओ..."

"परसो, आप ऐसा कीजियेगा की एक जोड़ी कपड़े रख लीजियेगा साथ... मैं आपको असली पहाड़ दिखाने ले चलूँगा...

सुबह 6 बजे आ जाऊंगा... यहाँ से 125 किलोमीटर दूर... 1 गाँव है... 'मीठी मिश्री'... मीठा पर्वत पे है इसीलिए उसका नाम मीठी मिश्री पड़ा शायद... वहां पर सेब के बाग़ हैं... और गाँव बीचों बीच एक छोटा सा मैदान भी है... टूरिस्ट बहुत कम जा पाते हैं वहां... होटल वगैरह भी नहीं हैं... फ़ोन यहीं रखकर चलिएगा... वहां नेटवर्क नहीं मिलेगा... और टोर्च मैं रख लूंगा... लाइट का भी भरोसा नहीं हैं वहां... भरोसा है तो सिर्फ शांत बैठे वृक्षों का और टिमटिमाते तारों का... थोड़ी थोड़ी देर में बहते रहते कोहरे का... और किसी किसी जगह से बहते पानी की कल कल आवाज़ का...

आप वहां करीब 10 बजे पहुचेंगी और... वहां सेब के एक व्यापारी हैं... उनके गेस्टरूम में रुकवा देंगे आपको... वहां आप पहाड़ो के बीच कल कल बहते झरनो के किनारे निकले रंगबिरंगे जंगली फूल देख सकेंगी... बहुत ढेर सारे पंछियों को एक दूसरे से बात करते सुन सकेंगी... वहां पास में एक बाबा रहते हैं... कहते हैं उनकी वाणी हमेशा सत्य कहती है... उनसे मिल लीजियेगा...

गाँव के बीच एक मैदान है... जिसमे एक टावर है, ऊपर से नुकीला... बीच में एक घडी भी लगी है... अभी तक 9:40 बजा है उसमे... रात का या दिन का... पता नहीं... हा हा हा हा हा हा हा

रात को गाँव के मर्द, औरतें और बच्चे पहाड़ी गीत गाते हैं और साथ नाचते भी हैं... अपना मनोरंजन करने के लिए... वहीँ क्लॉक टावर के नीचे...

उसकी अगली सुबह ३ बजे के आस पास चलेंगे... वहां से १४ किलोमीटर ऊपर.. घोड़े से... ३ घंटे लगेंगे..."

उसने बीच में टोक दिया... "३ बजे...??? मतलब रात को ३ बजे...??? अर्रेह पर घोड़े से कैसे...???"

"रोशिनी जी,चाँद रात है... आपके साथ साथ चाँद की भी रोशिनी होगी... आपको चाँद वहां से इतना पास दिखेगा की लगेगा की एक पत्थर मारु तो चाँद पे लग जायेगा... चाँद अपने अंदर उखड़े निशाँ के बावजूद रोशिनी जी को अपनी रोशिनी देता हुआ आपको आपके सफर में आगे चलने में मदद करेगा...

वहां सुबह ६ बजे तक आ गए तो आप देखेंगी... चारों तरफ चाँदिनी दूध में नहायी हुई बर्फ... ठण्ड... और फिर सुबह की पहली किरण... धीरे धीरे एक नारंगी आधा गोल टुकड़ा, पहाड़ के एक छोर से निकलता हुआ... और फिर कुछ देर में वो एक नारंगी गेंद… हमको देखती हुई चारों तरफ अपनी छटा बिखेर देगी...

एक तरफ पूरा सूरज... दूसरी तरफ पूरा चाँद... एक साथ...

फिर चाँद धीरे धीरे नीचे खायी में गिरता हुआ... जैसे कोई कटी पतंग... और सूरज ऊपर चढ़ता हुआ... जैसे कोई नयी "रोशिनी" जीवन में लाता हुआ... पूरी रफ़्तार से अपने नारंगी रंग को बर्फ पे चढ़ाता हुआ... जैसे पेड़ो के पत्तों को ओस की जमी बूँदों के बोझ से मुक्त करने के लिए ही वो है...

आप अभी ठण्ड महसूस कर ही रही होंगी की तभी एक सच्चे दोस्त की तरह सूरज अपनी गर्मी का सहारा देने आपके पास आ जायेगा...

ख़ुशी से आपके आंसू निकल आएंगे... और शायद पहली बार आप मुस्कुराते हुए अपने आंसुओं को महसूस करेंगी...

और फिर मैं आपके पीछे से, आगे आकर आपको थर्मस से चाय निकाल के दूंगा... और आप वहीँ पास पड़े पत्थर पे बैठ जाएँगी... मैंने उसपर एक पतली गद्दी पहले ही लगा दी थी...

फिर आप वहां बैठ के अपने दोनों हाथों से चाय के कप को पकडे उसकी गर्मी ले रही हैं, और धीरे धीरे उसको अपने पूरे जिस्म में वो गर्मी उतार रही हैं...

आप रुकी रहेंगी वहां... थोड़ा और... थोड़ा और... और मन करेगा आपका की ये वक़्त बस रुक जाये...

तभी आप पलट के देखेंगी की चाँद कहीं नीचे गिर गया है खायी में... और आप इस बार वापिस चलने कि बात को मान जाती हैं

आप घोड़े पे ही सो जाएँगी... और गेस्ट हाउस पहुंचकर भी आप बोलेंगी आज और रुक जाते हैं... कल सुबह जायेंगे...

मैं आपको उसी दिन चलने को बोलूंगा और आपको गाडी में सुला दूंगा और होटल ले आऊंगा आपके वापिस...

अगले दिन आप शॉपिंग कर लीजियेगा... सुबह से दोपहर तक... फिर खाने के बाद... आप 4 बजे मेरे साथ झील चलेंगी... वहां 1 घंटे बोटिंग कर लीजियेगा और मछलियों को दाना डाल लीजियेगा... ऊपर आ आकर खाएंगी... आपको बहुत सूंदर लगेगा...

क्यूंकि अगले दिन आपकी ट्रैन होगी शाम की तो आप जल्दी सो जाइएगा आज के दिन...

मैं आपको सुबह 4 बजे उठा दूंगा... फ़ोन करके... करीब 5 बजे आप मुझे नीचे मिलिएगा... यहाँ से 15 मिनट पर एक सड़क है.... जो बस 5 किलोमीटर दूर अपने गाँव में जाकर ख़त्म हो जाती है...

उसपर सुबह वॉक कीजियेगा आप 5:30 बजे से...

सूरज निकल रहा होगा... उसकी पहली किरण... रात के डरावने दिखने वाले पेड़ो के अंदर बैठे डर के राक्षस के देवतारूपी होने का एहसास करवा रही होगी... पेड़ो के सूखे पत्ते सड़क के दोनों किनारे सिमटे होंगे... पर कुछ 2-4 ही आवारा पत्ते बीच में होंगे... कुछ होते हैं ना बेशरम आवारा... बस वैसे ही...

कुछ और सूखे पत्ते... बिना किसी आवाज़ के पेड़ो से टूट कर नीचे गिर रहे होंगे...

पंछियों की आवाज़ में भी कोई शोर नहीं होगा वहां...

कहीं कोई गाय अपने बछड़े को दूध पिला रही होगी...

तभी एक पहाड़ी कौवा... जो पूरा काला होता है... आपके ऊपर से कांव कांव करता निकलेगा... जैसे उसको सबको बताना हो की आप आयी हो...

उसके पास एक छोटा का पानी का झरना है... उसका शोर बहुत नहीं होगा पर फिर भी वो आपको अपने पास बुलाने में कामयाब हो जायेगा...

आप दूर से देखिएगा पहले...

कई छोटी छोटी चिड़ियाँ किसी पत्थर की वजह से ठहरे पानी की आड़ में बारी बारी से नहा रही होंगी...

और फिर अपने परों को फड़फड़ा के खुद को सुखा रहीं होंगी...

फिर मैं आपको एक मुट्ठी भर चिड़ियों का दाना दूंगा और आप उसको वहीँ से फेक देंगी... वो उसको चुन चुनकर खाएंगी... आप मुस्कराएंगी और मुझसे और दाना मांगेंगी...

फिर वहीँ कुछ बन्दर भी कलाबाजियों का करतब कर रहे होंगे... और फिर किसी स्कूटर या कार की आवाज़ से आप अपने ध्यान से भटककर आसमान की तरफ देखेंगी...

रोशिनी से आसमान भर गया है... नारंगी रोशिनी एक तरफ से बह रही है... और इतने में सूरज का एक कोना पहाड़ के पीछे से चमचमाता हुआ दिखता है... और आपकी आँखों में चुभ जाता है...

आप कहती हैं... चलो दीपक... अब चलें... पैकिंग भी करनी है...”

मैं आपको जाते हुए देख रहा हूँ...

धीरे धीरे आपकी ट्रैन आपको मुझसे दूर ले जा रही है...

मैं दिल से रोकना भी चाहूँ तो मेरी जुबां मेरे ही साथ धोखा कर देगी..."

कुछ दिन में आप मुझे भूल जाएँगी... न भी भूली तो मेरा नाम तो पक्का भूल जाएँगी...

पर मैं आपको शायद कभी न भूल पाऊँ...रोशिनी..

आपका दीपक... (आपका एक हफ्ते का दोस्त...)
© सारांश