जब रखोगे, तभी तो उठाओगे
धनीराम नाम का एक व्यक्ति था। वह मेहनत करके अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। व धीरे-धीरे कामचोर बनता गया और एक दिन नाकारा हो गया। बैठे-ठाले ठगी का काम शुरू कर दिया। उसने पहले जान-पहचान वालों से उधार लेना शुरू कर दिया। जब लोग पैसे वापस मांगते, तो तरह-तरह के बहाने बना देता।
जैसे-जैसे उसके जान-पहचान के लोग आपस में मिलते गए, उसकी पोल-पट्टी खुलती गई। सब यही बात करते कि जबसे उसने पैसे लिए हैं, तब से मिलना ही बंद कर दिया। जब जान-पहचान के लोगों ने पैसे देने बंद कर दिए, तो वह अपने रिश्तेदारों से उधार के नाम पर पैसे ऐंठने लगा। पहले सगे रिश्तेदारों से पैसे लेने शुरू किए। इसके बाद दूर के रिश्तेदारों से पैसे मांगना शुरू कर दिया।
एक दिन वह एक साधु...
जैसे-जैसे उसके जान-पहचान के लोग आपस में मिलते गए, उसकी पोल-पट्टी खुलती गई। सब यही बात करते कि जबसे उसने पैसे लिए हैं, तब से मिलना ही बंद कर दिया। जब जान-पहचान के लोगों ने पैसे देने बंद कर दिए, तो वह अपने रिश्तेदारों से उधार के नाम पर पैसे ऐंठने लगा। पहले सगे रिश्तेदारों से पैसे लेने शुरू किए। इसके बाद दूर के रिश्तेदारों से पैसे मांगना शुरू कर दिया।
एक दिन वह एक साधु...