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इंतजार
घड़ी में रात के सात बज रहे थे। मनोज कैफे की खिड़की वाली सीट पर बैठ कर बाहर हो रही हल्की बारिश की बौछार में भीगे उन रास्तों को देख रहा था जहां उसने अपने सबसे अच्छे दिनों को जिया है। वह बाहर देख रहा था और अचानक ही उसके चेहरे पर खुशी की चमक आ गई और उसने अपनी नजर खिड़की से हटा कर दरवाजे की तरफ कर ली। अपने छाते को एक तरफ रखते हुए आशा अपने कपड़ों पर से बारिश के पानी को छाड़ते और बालो को सही करते हुए मनोज की तरफ देखा और एक बड़ी से मुस्कुराहट उसके चेहरे पर आ गई। आशा को देखकर मनोज भी अपनी खुशी छुपा नहीं पाया और उसकी तरह हाथ हिलाते हुए उसे जल्दी से टेबल के पास आने का इशारा किया। आशा मनोज के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई। मनोज आशा पर से अपनी नजर हटा ही नहीं पा रहा था। कुछ देर तक आशा अपने बालो को ठीक करती रही और मनोज उसे बस एकटक देख रहा था। पर अचानक ही मनोज को जैसे होश आया और उसने अपनी नजरो को दूसरी तरफ कर लिया।
"तो समय मिल ही गया जनाब को मिलने का" आशा ने मनोज की तरफ देखते हुए कहा। मनोज ने आशा की इस बात का कोई उत्तर नही दिया। बस अपने हाथ में पकड़े हुए चम्मच को जिसे वो काफी देर से पकड़े बैठा था, देख रहा था।
"शहर में इतने कैफे है और मिलने की इतनी सारी जगह। तुम्हे यही वाला मिला"
"क्या करू। जब तुमसे मिलने के प्लान बना तो बस यही जगह मुझे सबसे अच्छी लगी" मनोज ने मुस्कुराते हुए कहा। "वैसे इस साड़ी में तुम काफी अच्छी लग रही हो। हरा रंग बहुत अच्छा लगता है तुम पर"
"शुक्रिया शुक्रिया। क्या बात है। तारीफ करना भी आता है जनाब को। मुझे तो लगा था की कही मेरा इतना सजना संवरना बेकार न हो जाए। पर सब वसूल हो गया।"
"जैसे मैने पहले कभी तुम्हारी तारीफ की ही नहीं।"
"मुझे तो याद नही"
"अरे……" मनोज के बात पूरी करने से पहले वेटर टेबल पर ऑर्डर ले कर आ गया।
"तुम्हारी स्पेशल अमेरिकानो विद डबल एस्प्रेसो शॉट और साथ में ड्राई वॉलनट केक विद वैनिला सिरप"
"तुम्हे याद रहा? और तुमने पहले ही ऑर्डर भी कर दिया था" आशा ने हंसते हुए कहा।
"इतना बड़ा ऑर्डर। पता है कितना मुश्किल है याद रखना। और मुझे पता था की तुम इसके अलावा तो कुछ यहां ऑर्डर करोगी नही तो तुम्हारा समय बचा दिया"
"और तुम हमेशा की तरह फ्लैट कॉफी" आशा ने अपने कप को हाथ में उठाते हुए कहा "यह जगह अभी भी वैसी ही है। कुछ नही बदला। सबकुछ पहले जैसा। और कितना अच्छा "
"कितनी यादें जुड़ी है इस जगह से हमारी। तुम्हे याद है कैसे हम सब दोस्त उस चश्मिश मिश्रा की क्लास से भागते फिरते थे और यहां आकर मजे करते थे। और हमारे सभी बर्थडे पार्टी भी यहीं होती थी"
"हां और उसी में से एक पार्टी में मैं तुमसे मिली थी"
"सही कहा" मनोज ने आशा की आंखों में देखते हुए कहा। "गौरव की बर्थडे पार्टी थी न। अनिशा के साथ आई थी तुम वहां। और जैसे ही मैने तुम्हे देखा था बस देखता ही रह गया था"
"वैसे ही जैसे कुछ देर पहले देख रहे थे जब मैं यहां आई थी"
मनोज से कुछ कहा नहीं गया। उसने बस अपना कप उठाया और कॉफी पीने लगा। "तो तुमने नोटिस कर लिया था"
"अब ऐसे मुंह खोल कर किसी लड़की को घूरोगे तो पता तो चलेगा न"
"अब जब लड़की इतनी खूबसूरत हो तो कोई करे। और फिर तुमने ही तो कहा की सजने का फायदा भी तो कुछ होना था न"
"वैसे पसंद तो तुम भी मुझे उसी समय आ गए थे"
"सच्ची" "हां। मतलब ठीक ठाक लगते थे तुम भी तो बस…"
"चलो थोड़ी तो तारीफ मिली तुमसे"
आशा ने कुछ नही कहा और अपना ध्यान अपने केक पर लगा दिया। मनोज खिड़की के बाहर होती बारिश को देखकर मुस्कुरा रहा था।
"आशा। तुम्हे याद है हमारी पहली डेट इसी कैफे में इसी टेबल पर"
"और उस दिन भी ऐसी ही धीमी धीमी बारिश हो रही थी। हम दोनो कुछ समय अकेले बिताना चाहते थे। तुमने एक छोटे से कागज पर लिख कर मुझे चुपके से थमा दिया की कोई बहाना बना कर यहां से निकलो। हमारे सभी दोस्त मेहरा सर की क्लास में थे और हम दोनो उनसे अपना अपना झूठ बोल कर यहां आ गए थे"
"हां और तब सबको पता चल गया था की हम दोनो के बीच कुछ चल रहा है"
"उसके बाद भी तुम्हे शर्म आती थी अपने दोस्तो के सामने मुझसे बात करने में भी। हमेशा मुझे देखकर अलग भाग जाते थे तुम"
मनोज इस बात पर खुद पर ही जाने लगा। "मुझे आज भी तुम्हारे साथ बिताए वो सभी पल ऐसे याद है। जैसे कल की ही बात हो। कभी कभी लगता है की जैसे वक्त को रोक सकता वही पर। आगे बढ़ने ही नहीं देता। काश की मुमकिन होता"
"काश होता। पर सच तो यही है की अब न तो वक्त वो है। न हम। पांच साल हो गए कॉलेज से निकले हुए। पर यादों से बाहर कभी नही आ पाएंगे"
"सही कहा। कितना कुछ बदल गया है न इन पांच सालो में। बहुत लंबा समय है"
"हां। बहुत लंबा समय है। पर कभी कभी लगता है मानो कल की बात हो। जब तुम गए थे। कहा था तुमने की तुम पांच साल बाद वापिस आओगे। और देखो तुम आ गए" आशा ने हंसते हुए कहा।
"अब तुमसे वादा करके गया था। की वापस आऊंगा जरूर। तो कैसे नही आता। तुम मेरा इंतजार कर रही थी न। आना तो था ही"
"इंतजार तो तुमने बहुत करवाया मनोज। और वादे के भी तुम पक्के निकले। मुझे तो लगा था की तुम अब कभी नही आओगे"
"कैसे नही आता। तुमसे मिले बगैर एक दिन नही गुजरता था मेरा। फिर पांच साल कैसे गुजारे मैं ही जानता हू। हर रोज बस तुम्हारे बारे में तो सोचता था। इस पल का इंतजार करता था"
"मैने तुम्हारा बहुत इंतजार किया मनोज"
"काश थोड़ा और कर लेती"
आशा ने मनोज की इस बात को नजरंदाज कर दिया। "तो क्या किया पांच सालो में"
"बस एक अच्छी लाइफ बनाने के सपने से गया था। इस शहर से दूर। और कामयाब भी रहा। फल तो लोगो की गुलामी करते हुए काम सीखा फिर खुद का शुरू कर लिया। बस एक ही सपना था की अपने काम को इतना आगे ले जाना है इतना कामयाब होना है की दोनो के लिए एक शानदार जिंदगी बनानी है जिसमे मेरे प्यार को कोई तकलीफ न हो"
"तो तुम्हारा यह सपना पूरा हुआ"
"हुआ न। पर आधा…" मनोज थोड़ी देर चुप रहा फिर उसने आशा से पूछा "उम्मीद है तुम्हारे सपने तो पूरे हो ही गए होंगे"
इस बार आशा मनोज की बात को टाल नही पाई उसे कुछ बोलना था की आशा का फोन बजने लगा। उसने फोन उठाया और यह कहकर काट दिया की जल्द ही घर पहुंच जाएगी। आशा ने फोन को धीरे से अपने पर्स में रखा और चुपचाप बैठ गई।
"मनोज मुझे चलना चाहिए। बहुत देर हो गई है। और घर पहुंचने में भी समय लगेगा"
"आशा…" "हम्म्म" मनोज कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर कुछ बोला नहीं। थोड़ी देर दोनो के बीच कोई बात नही हुई।
"चला जाए अब। रात बहुत हो गई है" मनोज अपनी कुर्सी से उठा और काउंटर की तरफ बढ़ बढ़ गया। उसने बिल भरा और काउंटर पर खड़े लड़के से कुछ पैक करने के लिए बोला। उसने आशा को एक पैकेट पकड़ाते हुए बोला "यह लो। तुम्हारी बेटी के लिए। उम्मीद है उसे भी यहां की पेस्ट्री अच्छी लगेगी"
आशा ने उस पैकेट को हाथ में लिया और चुपचाप मनोज के पीछे पीछे कैफे से बाहर निकल गई। मनोज ने एक ऑटो वाले से बात की और आशा को उसमे बिठा दिया।
"मनोज। तुम यहां कब तक हो"
"कल सुबह की ट्रेन है"
"अब वापस कब आओगे"
"अब वापस आ कर क्या करूंगा। बाय"
मनोज आशा के ऑटो को जाते हुए देख रहा था। फिर थोड़ी देर बाद वह भी दूसरी तरफ मुड़ कर चला गया।


© savii