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इंसान का नजरिया
कल हम मंदिर गये थे।पूजा अर्चना के पश्चात हमारे मित्र शर्मा जी मिले।कहने लगे भगवान मुझ पर बहुत नाराज है।हमने पूछा," ऐसा आप क्यों कह रहे हैं? "
वे कहने लगे,हमने बालिका विद्यालय में तीन असहाय और आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों को शिक्षित करने हेतु गोद लिया है। उनका शिक्षा पर सब खर्च हम वहन करेंगे।ऐसा हम विगत तीन वर्षों से कर रहे हैं।मंदिर परिसर में भी समय-समय पर सामर्थ्य अनुसार सेवा अर्पित करते हैं।किंतु इसका परिणाम क्या मिला??आज मेरी 12 वर्षीय भतीजी हौस्पिटल में आई.सी.यू.में है।पैर की एक नस लगभग काम नहीं कर रही है। यदि दवाई से आराम न हुआ तो डाक्टर ने आपरेशन बताया है।आपको तो मालूम ही है कि भाई साहब तीन वर्ष पहले स्वर्ग सिधार गए थे।परिवार में भाभी जी और तीन बच्चे हैं। बेटा छोटा है अभी पापा का कारोबार नहीं संभाल सकता। मैं ही कारोबार और परिवार की देखभाल करता हूं।
हमने कहा,शर्मा साहब, कुछ कहने से पहले माफ़ी चाहूँगा।आप जो भी कुछ परिवार के लिए कर रहे हैं,वह आपकी सामाजिक जिम्मेदारी है।रही बात विद्यालय में,बालिकाओं को शिक्षित करने की,तो यह उन असहाय बालिकाओं के लिए आपका सत्कर्म है।इसके बदले में कुछ प्राप्त करने की आप उम्मीद न रखें ।इस के प्रति उपकार में आपकी स्वयं को समाज से सम्मान प्राप्त करने की आपकी लालसा स्पष्ट दिखाई देती है।
इतना कहकर मैनें उनके समक्ष हाथ जोड़ लिए और कहा अगर आपकी भावनााऐं आहत हुई हों,तो मैं क्षमा चाहता हूं।
आज एक सच्चाई को अपनी कलम से शब्दों में उतारने का साहस कर रहा हूं। कभी कभी हम किसी की मदद करके यह सोचते हैं कि आज हमने उसकी सहायता की और बदले में उससे सम्मान पाने की चाहत रखते हैं। अहंकार से घिरे होकर हम यह भूल जाते हैं कि स्वयं में हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं।एक तिनके जितने वजन को भी हम हिला नहीं सकते यदि उस परम पिता परमेश्वर की अनुकम्पा हम पर न हो।हमें उस ईश्वर का आभारी होना चाहिए कि उसने हमारी सेवा को स्वीकार किया।
इसके विपरीत अपने द्वारा की गई एक छोटी सी सेवा से हम इतने अहंकार ग्रस्त हो जाते हैं कि सामने से कृतज्ञता का ज्ञापन न होने पर स्वयं को कुंठित महसूस करने लगते हैं।
अब दूसरी स्थिति लेते हैं ।यदि हमारे ऊपर कोई भी मुसीबत आती है तो हम यह सोचने लगते हैं कि मैनें तो होशो-हवाश में सबका भला ही किया है।ईश्वर मुझ पर क्यों कुपित हो गए हैं।यहां विचार करने की बात यह है कि हमारी यह सोच ही हमारे अहंकार को जन्म देती है कि " मैने सब का भला ही किया है।" साथ ही यह कहकर कि ईश्वर मुझ पर कुपित क्यों हो गए हैं,हमने उनकी निष्पक्षता और उसकी कार्य शैली पर भी सवालिया निशान उठाया है।
अधिक क्या लिखूं।कभी कभी लोगों की सोच सुनकर ह्रदय द्रवित हो उठता है कि इंसान में कितनी गिरावट आ गई है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी सोच में परिवर्तन लाएं।

© mere alfaaz