...

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सब्जी _मंडी वाला इश्क
मेरी तुमसे अनगिनत अपेक्षाएं है...और उन अपेक्षाओं को तुम्हे पूरा करने की कोशिश करनी होगी ...
जैसे

सब्जी मंडी से तोल मोल किए बिना तुम सब्जी उठा कर मत लाना...और फ्री के धनिया लेने का हुनर भी तुमको सीखना पड़ेगा..वो दस रुपिए के दो निम्बू देगा पर तुमको तीन नींबू लेने की कला आनी ही चाहिए...!!
मैं हमेशा चाहूंगी की तुम घंटो अपने पैर दौड़कर मेरे साथ स्ट्रीट शॉपिंग का हुनर सीखो...सौ रूपिए की चीज को चालीस में कैसे लिया जाता है ये बात तुमको जाननी होगी...!!!
मैं हमेशा चाहूंगी की तुम्हारे जेब के पॉकेट के अलावा भी तुम चीनी या चावल के डिब्बे में पैसे बचाने का हुनर सीखो...ताकि ये जो पानी की तरह पैसा बहाने की तुम्हारी आदत है वो कही न कही रुक जाए...!!!

अब तुम कहोगे की क्या मुझे तुम औरत बनाने पर तुली हो ...!!!!
तो मैं कहूंगी.... की... हां..मैं चाहती हू की मेरे अस्तित्व का एक अंश मैं तुम में छोड़ दू...ताकि जब मैं भी तुम्हारे साथ ना रहूं तो भी तुम अपनी विषम परिस्थितियों से लड़ने के लिए तैयार रहो...
बदलती परिस्थिति में तुम अपने आप को मिट्टी के घड़े के भांति आकार दे पाओ...!!!
सुनो
मुझे गलत ना समझो ...पर मैं बस यही चाहती हू की जैसे तुम मेरे अर्धांग हो वैसे ही तुम भी मुझको खुद में रख लो ...!!
और मेरी इन अपेक्षाओं को पूरा करो जो तुमको विपरीत परिस्थिति में धैर्य दे.....!!!!

© A.subhash

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