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हमें रिश्तों को संभालना होगा
उठ जाऊँगी हाँ बाबा उठ जाऊँगी ! चाय ही तो बनाकर देना है आपको ! रोज रोज का ही तो काम है यह मेरा ! कहाँ फॅंस
गई मुई शादी करके ,न दिन को चैन न रात को आराम !
बड़बड़ाते हुए उठकर किचन की ओर चली गई !

थोड़ी देर बाद लौटकर लो पियो शायद इसके बिना तुम्हारा मुड चेंज नहीं होता ! सुनो मुझे आज कहीं जाना है और हाँ
आफिस से जल्दी आना मर्जी पड़े तब आते हो मुझे बार बार खाना गरम करना पड़ता है बताए देती हूँ शाम तक लौट आऊँगी ! ख्याल रहे बिट्टू को स्कूल से लाना हैै,सब्जी,किराना ,गैस भी लाकर रखना है ! ठीक है ..

इस रोज की किटकिट,तुनकमिजाजी से राहुल अच्छे से परिचित था इस शहर में ,मोहल्ले में नया नया ही आया था
बहुत बोलता था वह भी पहले पर अब उसके स्वभाव में
बदलाव था उसने कम और काम का ही बोलना जारी रखा बस ! हाँ हूँ मैं जवाब देकर वह अपना काम निपटाकर रोज की तरह घर से निकल गया !

मीना बड़बड़ करती रही ,बिट्टू को तैयार कर स्कूल छोड़कर वह मार्केट में निकल गई ! आवश्यक खरीददारी कर ,कुछ छोटे मोटे काम कर वह घर को वापस लौट पड़ी !

काम के तनाव से बढ़ रही है दूरियाँ दोनों के बीच में शायद !
इसी वजह से राहुल खोये खोये खींचे खींचे रहने लगे हैं ,
इस अंजाने शहर में कौन है हमारा ,हमें बैठकर पाटना होगी
ये खाई आपसी खींचतान की कई कोई और मोड़ न ले ले
जिन्दगी हमारी ..
अपना राग प्रलाप करती,विचारों में खोई हुई चल रही थी वह रिक्शे वाले के तेज हार्न से चौंकी और रास्ते से साइड हो गई कहाँ चलना है बहिन जी ,रिक्शे वाले ने कहा !
नहीं पास ही जाना है चली जाऊँगी ...!!

उधर राहुल भी थक हार कर बिट्टू को लेकर घर पहुँचा सोचता है कि आज भारी जंग करेगी मीना उसके बताए सामान जो न लाया हूँ । मैं भी क्या करूँ ,जिन्दगी की जद्दोजहद समय ही कहाँ देती है शायद समय ही वह औषधि है जो हमारे जीवन को सँवार दे ! बेशक समय नहीं है पास तो क्या जुबाँ पे मीठे बोल ,दिल में जज़्बात तो है ना ,
जब से बदला है रुख मैंने अपना ,मीना के स्वभाव में तल्खी ,
रुखापन शायद तब से आया है ,आफिस का तनाव घर पर ,
घर का दवाब आफिस पर ,
हमारे ख्वाब तो जैसे इनके बीच कुचल कर ही रह गए हैं
मुझे ही कोई रास्ता निकालना होगा ,
ये तनाव ,ये झुंझ की दीमक लील न जाए कहीं हमें ..
उसकी तन्द्रा दरवाजे पर दस्तक ने तोड़ी वह दौड़कर गया
बोला ओह ! सॉरी मैंने सुना नहीं तुम कब से दरवाजे पर खड़ी हो ?
मीना मुस्कुराते हुए अन्दर चली आई मन ही मन बोली आज चाँद कितना बदला बदला है ,

बदलाव वह ख़ुद में भी महसूस कर रही थी उसकी आँखों में
ऑंसू थे पश्चाताप के ,खुशी के वह ख़ुद को संयत कर बोली
आपने चाय पी या नहीं ..
राहुल हाँ हाँ मैं सोच रहा था तुम भी आ जाती तो साथ ही पीते ,इसलिए नहीं पी ,
ठहरो मैं बनाकर लाता हूँ यह कहकर राहुल किचन की ओर बढ़ने लगा ,
मीना बीच में खड़ी होकर( हंसकर) नहीं नहीं मैं अपने क्षेत्र का अतिक्रमण सहन नहीं करुँगी यह कहकर हँसते हुए चाय बनाने चली गई !

(स्नेह के यही बँध तो है जो बाँधे रखते हैं रिश्तों को परस्पर
एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान,विश्वास ही है वह कड़ी जो रिश्तों को मजबूती प्रदान करती है !
रिश्तों को संभालना ,सहेजना सचमुच कला है संयोजन है रंगों का हमें यह सीखना होगा ! राहुल निरन्तर सोचे जा रहा था ! )

-MaheshKumar Sharma
8/12/2022

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