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नवरात्र का आध्यात्मिक महत्व और व्रत का उद्देश्य
नवरात्र का प्रारंभ ऋतुओं के संधिकाल में होता है।यह संधि काल आश्विन मास और चैत्र मास के समय में आता है।उन दिनों शरीर मन और प्रकृति के विभिन्न रूपों में विशेष उत्साह भरा होता है।यह ऋतुओं का संधिकाल होता है इसलिए लोग रोगों से भी शीघ्र ग्रसित हो जातें हैं।
आयुर्वेद इस समय को शरीर की आंतरिक शुद्धि के लिए उपयोगी मानता है।
प्रकृति में इस समय एक नई उर्जा होती है।जिसको आत्मसात कर लेने से व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है, आर्युवेद मानता है कि पाचन क्रिया के खराबी ही अनेक रोगों की जड़ है और वह मानता है कि व्रत से पाचनशक्ति बढ़ती है व्रत उपवास का प्रयोजन भी यही है कि हम अपने मन मस्तिष्क को नियंत्रित कर सकें
मनोविज्ञान मानता है कि हम व्रत उपवास एक पवित्र भावना से रखतें है,उस समय हमारी सोच सकारात्मक होती है जिसका हमारे शरीर पर विशेष असर होता है। इससे हमारभीतर नव जीवन
का संचार होता है, व्रत करने से हमें शुद्धता और शुचिता दोनों की प्राप्ति होती है।

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© सरिता अग्रवाल