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चंद लम्हों की प्रेम कहानी
अपने शहर से कोसों दूर आने के बाद अभी भी समीर अपनी मंज़िल से काफ़ी दूर था। अपने आगे के सफर को शुरू करने से पहले समीर ने उसी जगह पर कुछ समय बिताने का सोचा। इस अनजान शहर में लोगों से बातें करते करते समीर शहर घूम कर उसकी खूबसूरती के नज़ारे ले रहा था। सारा शहर घूमने के बाद समीर ने अपनी मंज़िल की तरफ आगे बढ़ने का फैसला किया। आगे के सफर के लिए वो उस शहर के उसी बस अड्डे पर वापिस आया जहाँ सुबह उसने अपना सफर रोका था। पूछताछ खिड़की से जानकारी लेकर वह उसकी मंज़िल की तरफ जाने वाली बस में जा बैठा। अभी बस को चलने में काफी समय थे और बस काफी ख़ाली भी थी। समीर भी बस में बैठ कर उसके चलने का इंतज़ार करने लगा। जब बस के चलने का समय हुआ तब तक बस की सभी सीट भी पूरी तरह भर चुकी थी सिवाये समीर की सीट को छोड़कर। इसे क़िस्मत का तौफा कहें या कुछ और बस के निकलने से तुरंत पहले दो लड़कियाँ बस में चढ़ी। बस में चढ़ते ही दोनों पूरी बस में खाली सीट खोजने के लिए इधर उधर देखने लगी। अंत में उन्हें समीर के पास खाली सीट दिखाई दी तो दोनों अपना अपना सामान लेकर उसकी तरफ बढ़ने लगी और देखते देखते वह समीर के पास आकर खड़ी हो गई। समीर ने भी स्थिति को भाँपकर उन दोनों को सीट पर बैठने के लिए बोल दिया। इसी बीच बस भी अपनी मंज़िल की तरफ चल चुकी थी। थोड़ी दूर निकलने पर उनमें से एके लड़की ने समीर से पूछा कि उसे कहाँ जाना है। समीर ने उसे अपनी मंज़िल का पता बताया और उससे भी वहीं सवाल किया जो उस लड़की ने समीर से किया था। इसी तरह दोनों में बातों का सिलसिला शुरू हो चला। बातों ही बातों में समीर को पता चला वो दोनों सगी बहनें है जो कॉलेज की छुट्टियाँ पड़ने पर अपने घर जा रही है। उनमें छोटी बहन का नाम रिया था और बड़ी बहन का नाम गुनगुन था। बस को चलते चलते एक घन्टे से ज्यादा का वक़्त हो गया था पर उसे अभी भी समीर को मंज़िल तक पहुँचाने में लगभग चार घंटे का वक़्त लगने वाला था। उन दोनों को लगातार बात करते देख गुनगुन भी उन दोनों की बातचित में शामिल हो गई। तीनों इसी तरह बात करते रहे और थोड़ी ही देर में रिया को नींद आने लगी। उसके सोने के बाद समीर और गुनगुन के बीच एकदम जैसे सनाटा सा छा गया था। लगभग पंद्रहा मिनट बाद समीर ने ही गुनगुन से उसके परिवार के बारे में सवाल किया। गुनगुन ने उसे बताया उन दोनों बहनों के अलावा उनका एक बड़ा भाई और उनके मम्मी पापा है। उसके पापा एक सरकारी कंपनी (हिंदलकों) में काम करते है और उसकी मम्मी ग्रहणी है। गुनगुन ने समीर को यह भी बताया की उसके भाई ने अपने कॉलेज की पढ़ाई उसके शहर के पास के ही एक कॉलेज से पूरी की। दोनों बात करने में ऐसे खो गए थे जैसे वो एक दूसरे को बहुत अच्छे से जानते हो। अब समीर के दिल में गुनगुन के लिए अलग एहसास घर करने लगा था। इधर गुनगुन भी बीच बीच में कनखियों से समीर को देख रही थी जिससे कभी कभी दोनों की नजरें टकरा जाती और दोनों एकदम शर्मा कर अपनी नजरें हटा लेते थे। गुनगुन उसे अपने दोस्तों के साथ की हुई मौज मस्तियों के बारे में बताने लगी साथ साथ अपनी कुछ तस्वीरें भी उसे दिखाने लगी। समीर को ये सब एक सपने जैसे लग रहा था और वो तो बस चुपचाप उसकी बातों को सुन रहा था। अब अलाम ये हो चल था कि समीर मन ही मन गुनगु को दिल दे बैठा था। समीर उसके साथ आने वाले कल मे उसके साथ एक नई दुनिया बना चुका था। गुनगुन की बातों से कहीं न कहीं समीर को भी ये अंदाजा हो चला था की उसके मन में भी समीर को लेकर कुछ नहीं बहुत कुछ चल रहा था। इसी उलझन और बातों के सिलसिले के साथ कब बस समीर की मंजिल के करीब पहुँच गई थी उन दोनों को पता ही नहीं चला। मंज़िल को करीब आता देख समीर ने गुनगुन की तरफ एक सवालियाँ निगाह से देखा जैसे वो उसे बताना चाह रहा हो कि वो ज़िंदगी के सफर में भी उसका साथ चाहता है। गुनगुन भी आँखों मे उदासी भरकर शायद उसके सवाल का यहीं जवाब देना चाह रही थीं की उसके साथ चाह कर भी नहीं चल सकती क्योंकि गुनगुन ने उसे बता दिया था की उसके घरवाले उसके लिए लड़का तलाश कर रहे है। बस से उतरने से पहले समीर ने एक बार फिर गुनगुन से सवाल किया पर इस बार सवाल आँखों से नहीं बोलकर किया
समीर – क्या मुझे यहाँ से अकेले ही आगे जाना होगा?
गुनगुन (होंठों पे मुस्कान और आँखों में पानी लिए) – शायद यहीं तक लिखा था साथ हमारा; इसी का नाम तकदीर है।
बस से उतरते हुए समीर नें गुनगुन को आखिरी अलविदा कहा और वह गुनगुन और उसकी यादों को अपने दिल के किसी कोने में कैद करके अपनी मंज़िल की तरफ चल पड़ा।

© feelmyrhymes {@S}