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कहानी
अब तो दिया की आदत हो गई थी। हर शाम बारिश में भीगने की..! एक दिन ऑफिस से आते वक्त दिया की मुलाकात कुंदन से हुई। कुंदन ऑफिस में नया-नया आया था।वो रहने के लिए एक किराए का मकान ढूंढ रहा था।
दिया ने बताया मेरे घर के बगल में एक मकान खाली है तुम चाहो तो वहां बात कर सकते हो....
फिर दोनों साथ-साथ ही वहां से निकल पड़े । रास्ते में चलते-चलते दोनों बातें कर रहे थे ऐसे मौसम में अगर एक प्याली चाय और पकौड़े मिल जाते तो मज़ा आ जाता।
थोड़ी दूर पर उन्हें एक चाय की टपरी नजर आई ।जहां पर बहुत से लोग लाइन में लगे हुए थे चाय और पकौड़े के लिए। पकोड़े से खुशबू इतनी तेज आ रही थी कि उनके कदम भी अपने आप ही टपरी के तरफ चल पड़े।
वहां से उन्होंने चाय और पकोड़े लिए फिर चाय की चुस्कियां भरते हुए दोनों आगे निकल पड़े।
थोड़ी दूर ही दूर आगे गए होंगे कि इतनी तेज बिजली कड़की की दोनों डर के मारे एक दूसरे से चिपक गए और जब घर पहुंचे तो घर वालों से डांट मिला वह अलग से मां ने दिया को साफ-साफ कह दिया आगे से कभी भी बिना छतरी के तुम ऑफिस नहीं जाएगी

उस दिन भी बिल्कुल ऐसी ही बारिश हो रही थी।
जब मैं और काव्या एक दूसरे से जुदा हो रहें थे।
ऐसा लग रहा था जैसे हमारी जुदाई से आसमां भी
रो रहा था ।आज अचानक काव्या को सामने पाकर पुरानी यादें ताजा हो गई।
मुझे चाय बहुत पसंद थी और
काव्या को पकोड़े ..हम अक्सर यही नाश्ता किया करते थे। काव्या को बारिश में भीगना भी बहुत पसंद था और मुझे बारिश बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थी। पर काव्या के साथ मुझे बारिश में भीगना भी अच्छा लगने लगा । एक बार जब मैं उसे भींगते हुए देख कर छतरी ले आया था।तब उसने मुझ पे हंसते हुए कहा था। देखो तो किस क़दर मेघ अपना स्नेह धरती पे लुटा रहा है। इतने में बिजली तड़की और वो मेरे सीने से जा लगी। उसके बदन की खुशबू से मेरा तन बदन महक उठा था।