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सुनो कहानी ( भाग - २)
अगले दिन भी दुल्हन चिड़िया मेरे दिलो दिमाग में घूमती रही। छज्जे पर दाना चुगती चिड़ियों को मैं बताना चाहती थी कि तुम्हारी जैसी एक चिड़िया जो पिंजरे में कैद है , जाओ उसे आज़ाद करवा लाओ। मगर वो सब मेरे पास जाते ही उड़ जाती थी।

जो काम रोज़ नानी देर रात तक करती रहती थी, वो सब उस रोज मैंने स्वयं कर दिए। आंगन में पानी का छिड़काव किया,आसमान तले सबका बिस्तर लगा दिया , नाना जी के सिरहाने पानी रख दिया।
नानी खुश तो थी मेरे सब कामों से, पर भाव खा रही थी।
"अच्छा ठीक है आज कहानी के बीच में नहीं टोकूंगी,आप आगे क्या हुआ बताओ ना!" मैं कुछ इस तरह से इसरार कर रही थी मानो कोई शराबी शराब...