...

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" सूनी आँखों के सपने "
जाने कितनी उम्मीदें उन आँखों में सेज सजाये बैठी हैं
सूनी आँखों में सुनहरे सपने बरसों से सजाये बैठी हैं
कुछ अपने वापस आने का वादा करके गए मग़र
वापस आने की राह ना पकड़ी, कबसे आस लगाएँ बैठी हैं

खोखले ही निकले उनके वादे क्या करे नादान दिल
आस झूठी है फ़िर भी, कबसे उम्मीद लगाए बैठी हैं
अपनों को सीने से लगाने के स्वप्निल सपने देख रही हैं
मासूम हैं ये, इन्हें मालूम नहीं दिल को धोखे में किये बैठी हैं

सपने मरते नहीं, हर रोज़ और दिल में प्यास जगाते हैं
आँखें सूनी ही सही, मग़र राहों पे नज़र लगाए बैठी हैं
आस का पंछी उड़ता रहता आसमान में रोज़ स्वछंद
उनको भी काश ख़बर लगे जिनके लिए पंख लगाए बैठी हैं

मन हमेशा ही रहता अपनों के संग, मसला इन आँखों का है
इन्हें चैन नहीं कहीं भी इक पल, ख़ुद को बेचैन किये बैठी हैं
काश कभी बतला पाते इन भोली आँखों को भी किसी तरह
कि छोड़ कर गए हुए आते नहीं, क्यों झूठी आस लगाए बैठी हैं

© सुधा सिंह 💐💐